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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. २७ चित्रकूटवक्षस्कारनिरूपणम् तदर्थश्च तत्रैव द्रष्टव्यः, 'उभओ पासिं' उभयोः-द्वयोः पार्श्वयोः भागयोः 'दोहि' द्वाभ्यां 'पउमारवेइयाहिं' पद्मवरवेदिकाभ्याम् 'दोहि य' द्वाभ्यां च 'वणसंडेहिं' वनषण्डाभ्याम् 'संपरिक्खि' सम्परिक्षिप्तः सम्यक् प्रकारेण परिवेष्टितः, 'वण्णओ' वर्णकःवर्णनपरः पदसमूहः 'दुण्ड ।' द्वयोरपि अत्र अन्यत उद्धृत्य न्यसनीयः, तत्र पद्मवरवेदिका वर्णकश्चतुर्थसूत्रात् वनपण्डवर्णश्च पञ्चमसूत्राद्बोध्यः। अथास्य शिखरभागवर्णनमाह-'चित्रकूडस्स' चित्रकूटस्य 'णं' खलु 'वक्खारपव्ययस्स' वक्षस्कार एवंदस्य 'उप्पि' उपरि 'बहुसमरमणिज्जे' बहुसमरमणीयः 'भूमिभागे' भूमिभाग. 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः 'जाव आसयंति' याचदासते अत्र यावत्पदेन भूमिमागवणन तथा 'तत्य यहवे वाण मन्तरा देवाय देवीओय' इति दस ग्रााद, एमाया'तत्र बहवः व्यन्तराः 'वानमन्तराः' देवाश्च देव्यश्च' इति, तत्र भूमिमागवर्णनं पाठ सूत्रात् संग्राह्यम् तथा-तत्रेत्यादीनां पदानामर्थश्च तत एव बोध्यः । की जानकारी चतुर्थ सूत्र से करलेनी चाहिये 'उभओ पासिं दोहिं व उभयरवेड्याहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते' यह दोनों पार्श्वभागों की तरफ दो पद्मवरवेदिकाओं से एवं दो वनषंडो से अच्छी तरह से घिरा हुआ है । 'वगओ' वनपंड और पद्मवरवेदिका का वर्णन यहां पर करलेना चाहिये यह इसका वर्णन क्रमशः पंचम सूत्र और चतुर्थ सूत्र में किया जा चुका है। 'चित्तकूडस्स वक्खारपव्ययस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' चित्रकूटनामके वक्षस्कार पर्वत का ऊपर की भूमिका जो भाग है वह बहुसमरमणीय है 'जाव आसयंति' यहां यावत् अनेक देव देवियां आराम किया करती है तथा सोती उठती बैठती रहती हैं। यहां यावतू पद से भूमिभाग के वर्णन करने की एवं 'तत्थ बहवे याणमंतरा देवाय देवीओय' इस प्रकार से पाठको ग्रहण करने की बात कही गई है भूमिभाग के वर्णन को जानने के लिये छठा सूत्र देखना चाहिये 'चित्तकूडे णं वक्खारपव्वए कह कूडा पण्णत्ता' हे भदन्त ! इस चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत पर कितने कूट कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! व्याच्या यतुथ सूत्रमाथी न वी नसे. 'उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहिय वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते' से पति मन्त्र पाव भाग त२३ मे ५१२ २६गाथी तभी मे वनमाथी सारी शत परिवृत छ. 'वण्णओ वन मन ५१२ वहानुन અહીં કરવું જોઈએ એ બન્નેનું વર્ણન કમશઃ પંચમ સૂત્ર અને ચતુર્થ સૂરમાં કરવામાં मावेश छ. 'चित्तकडस्स वक्खारपव्वयस्स उपि बहसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णते' यत्र કૂટ નામક વક્ષસ્કાર પર્વતની ઉપરની ભૂમિકાને જે ભાગ છે. તે બહુ સમરમય છે. 'जाव आपयंति' मही यावत् भने देव-वी। माराम ४२ती २७ छे तेभ सूती,
ती-असती २९ छे. सही यावत पहथी भूभिमागनु वर्णन ४२वानी भर 'तत्थ बहवे वाणमंतरदेवा य देवीओ य' मा प्रमाणे पाई अडय ४२वानी वात वामां मावेसी छे. भूमिलान वर्णन विषे नवा माटे छ। सूत्रनी व्याच्या वायवी नसे. 'चित्तकूडे
ज०४४
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