________________
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे दैर्येण, इहोपपत्ति रेवम्-योजन ३२६८४ कला ८ रूपाद्विदेहविस्तारात्सीतायाः शीतोदाया वा नद्या विस्तारो पञ्चशतमित योजनलक्षणः प्राप्यते, यथोक्तमानं शेषस्या॰ लभ्यते, इह ययपि सीतायाः शीतोदाया वा नद्याः समुद्रप्रवेशस्थाने एव पञ्चशतयोजनप्रमाणो विस्तारोऽस्ति अन्यत्र तु स्वल्पः स्वल्पतरो विस्तारोऽस्ति, तथापि कच्छादिविजयसमीपे तटद्वयवर्तिनौ रमणदेशावादाय पञ्चशतयोजनप्रमाणो विस्तारो लभ्यत इति, कच्छविजयस्योत्तरदक्षिणायतखविवरणं गतम्, अधुना पूर्वपश्चिमविस्तीर्णत्वं विवियते-'दो जोयणसहस्साई' इत्यादि-द्वे योजनसहस्र 'दोणि य' द्वे च 'तेरसुत्तरे' त्रयोदशोत्तरे-त्रयोदशाधिके 'जोयणसए' योजनशते 'किंचिविसेसूणे किश्चिद्विशेषोने-किश्चिन्यूने 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण प्रज्ञप्त इति, इहाऽप्युपपत्ति रेवम्-इह महाविदेहेषु देवकुरुत्तरकुरुमेरुभद्रशालवनवक्षस्कारपर्वतान्तरनदीवनमुखाभाग अर्थात् एक योजन के उन्नीसिया दो भाग । 'आयामेणं' लंबाई से होते है।
यहाँ इस प्रकार से समझना चाहिए-३२६८४ योजन कला ८ रूप विदेह क्षेत्र के विस्तार से सीता एवं सीतोदा नदी का विस्तार पांचसो योजन के प्रमाणवाला मिलता है। यथोक्त प्रमाण शेष के आधे से प्राप्त होता है, यहां पर यद्यपि सीता अथवा शीतोदा नदी के समुद्र प्रवेशस्थान में ही पांचसो योजन प्रमाण का विस्तार है अन्यत्र स्वल्प या स्वल्पतर विस्तार होता है तो भी कच्छादि विजय के समीप दोनों तटवर्ति प्रदेश क्रीडास्थान को लेकर पांचसो योजन प्रमाण का विस्तार लभ्य हो जाता है, इस प्रकार कच्छ विजय का उत्तर दक्षिण में लंबाई का विवरण होता है।।
अब पूर्व पश्चिम के विस्तार का निरूपण करते हैं-'दो जोयण सहस्साई दो हजार 'दोणि य तेरसुसरे जोयणसए' दोसो तेरह योजन से 'किंचि विसेसूणे' कुछ कम 'विक्खंभेण' विष्कंभ से कहा है। यहां पर भी इस प्रकार से ज्ञात भागे' सागसमा भाग अर्थात ४ योजना १६ मागणीसयां मे मा 'आयामेण समाथाय .
અહીંયાં આ રીતે સમજવું જોઈએ ૩૨૬૮૪ જન કલા ૮ રૂપ વિદેહ ક્ષેત્રના વિસ્તારથી સીતા અને શીતેદા નદીને વિસ્તાર પાંચસે જન પ્રમાણ મળે છે. યક્ત પ્રમ ણ શેષના અર્ધામાં મળે છે. અહીંયાં જે કે સીતા અગર શીતેદા નદીના સમુદ્ર પ્રવેશ માર્ગમાં જ પાંચસે જન પ્રમાણને વિસ્તાર છે, બીજે સ્વલ્પ અગર સ્વ૫તર વિસ્તાર થાય છે. તે પણ કચછાદિ વિજયની નજીક બેઉ તટવતિ પ્રદેશ ક્રિીડા સ્થાનને લઈને પાંચસે જન પ્રમાણુને વિસ્તાર પ્રાપ્ત થઈ જાય છે. આ રીતે કચ્છ વિજયની ઉત્તર દક્ષિણમાં લંબાઈનું વર્ણન થાય છે. - वे पूर्व पश्चिमना विस्तारनु नि३५ ४२ छ.-'दो जोयणसहस्साई' मे 'दोणि य तेरसुत्तरे जोयणसए' मा ते२ यो१४ नयी "किंचि विसेसूणे' ४४४ ४५ 'विक्खंभेणं'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org