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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. २४ उत्तरकुरुनामादिनिरूपणम् चतुर्थस्य ‘उत्त(पुरस्थिमेगं' उत्तरपौरस्त्येन-उत्तरपूर्वस्याम् ईशानकोणे 'रययकूडस्स' रजत कूटस्य 'दक्खिणेण' दक्षिणेन दक्षिणस्यां दिशि ‘एत्थ' अत्र-अत्रान्तरे ‘णं' खलु 'सागरकूडे सागरकूटं 'गाम' नाम 'कूडे' कूटं 'पण्णत्तं' प्रज्ञप्तम्, तस्य मानमाह-'पंच जोयणसयाई पञ्च योजनशतानि-पञ्चशतयोजनानि 'उद्धं' ऊर्ध्वम् 'उच्चत्तेणं' उच्चत्वेन 'अवसिडें' अवशिष्टं-शेषम् मूलविष्कम्भादिकम् 'तं चेव तदेव-गन्धमादनाभिधवक्षस्कारपर्वतवत्, अत्र देवीमाह-'मुभोगादेवी' सुभोगादेवी-अधोलोकवासिनी दिकूकुमारी, अस्या राजधानीमाह'रायहाणी' राजधानी . 'उत्तरपुरस्थिमेणं' उत्तरपौरस्त्येन-उत्तरपूर्वस्याम्-ईशानकोणे,
अथ रजतकूटे देवीमाइ-'रययकूडे' रजतकूटे-षष्ठे, 'भोगमालिणी' भोगमालिनी दिक्कुमारी देवी, अस्या राजधानीमाह-'रायहाणी' राजधानी 'उत्तरपुरत्थिमेणं' उत्तरपौरस्त्येन-ईशानकोणे, एवं षट्कूटान्युक्तानि अथ सप्तमादि नवमान्तकूटानि निरूपयितुमाह-'अवसिहा कूडा' अवशिष्टानि कूटानि सीताकूटादोनि त्रीणि 'उत्तरदाहिणेणं' उसरदक्षिणेन-उत्तरदक्षिणस्यामनेतन्यानि-बोधपथं- नेयानि बोध्यानि, अयमाशयः-पूर्वस्मात्पूर्वस्मात् कूटात् उत्तरोत्तरं कूटमेणं' ईशाम कोण में 'रययकूडस्स' रजतकूट की 'दक्खिणेणं' दक्षिण दिशा में 'एत्थ' यहां पर 'णं' निश्चय से 'सागरकूडे णाम' सागरकूट नामका 'कूडे पण्णत्ते' कूट कहा है । 'पंच जोयणसयाई' पांचसो योजन का 'उद्धं उच्चत्तेणं' ऊंचा है। "अवसिढे' शेष मूल विष्कंभादि कथन 'तं चेव' गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के जैसा ही कहा हैं। 'सुभोगादेवी' अधोलोक में वसनेवाली दिक्कुमारी सुभोगा यहां की देवी है। __ अब सागर कूट की राजधानी का कथन करते हैं-'रायहाणी उत्तरपुरथिमेणं यहाँ की राजधानी ईशान कोणमें कही है। इस प्रकार छ कूटों का कथन किया हैं।
अब सातवें कूट से लेकर नववे कूट का कथन करते हैं-'अवसिट्टा कूडा अवशिष्ट सीतादि तीन कूट 'उत्तरदहिणेणं' उत्तर दक्षिणमें समझलेवें।
इस कथन का भाव यह है कि-पहले पहले कूटों से पीछे पीछेका कूट उत्तर २७ फूटनी 'उत्तर पुरथिमेणं' शान दिशामा 'रयय कूडरस' २४ टनी 'दक्खिणेणं' दृक्षि शमां 'एत्थ' महीयां 'ण' निश्चय 'सागर कूडे णाम' सार छूट नाभन 'कूडे पण्णत्ते' छूट ४९ छ 'पंच जोयणसयाई' पांयसा योगान 'उद्धं उच्चत्तेणे' या छ 'अवसिट्र' माटीना भूण
विविगेरे ४थन 'तं चेव' गधमान वक्ष४२ ५तना अथन प्रमाणे स छे. 'सुभोगा देवी' मघौलीमा सनारी भारी सुमोगा महीनी हेवी छे.
व साग२ टनी यानीनु ४थन ४२ छे.-'रायहाणी उत्तरपुर स्थिमेणं' महीनी २०४ધાની ઈશાન કેણમાં કહેલ છે. આ રીતે છ કુટોનું કથન કરવામાં આવેલ છે.
व सातमा झूटथी ६२ नवमांट सुधीना टोनु थन ४२ छ-'अवसिद्धा कूडा' माडीना सीता झूट 'उत्तरदाहिणेणं' उत्तर दक्षिमा सम वा.
આ કથનને ભાવ એ છે કે–પહેલા પહેલા ફૂટથી પછિ–પછિના કૂટો ઉત્તર દિશામાં
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