SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९८ जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्रे 'यावत्संभवं विधि प्राप्ति' रिति न्यायात् सिद्धायतनकूटातिरिक्तेषु त्रिषु कूटेषु माल्यवदादिषु कूटसदृशनामका देवा इति बोध्यम्, सिद्धायतनकूटेतु सिद्धायतनं न तु देवः, अन्यथा 'छ सयरिकडेसु तहाचूलाचउवणतरुसु जिणभवणा। भणिया जंबुद्दीवे सदेवया सेस ठाणेसु॥१॥' एतच्छाया-पट् सप्रतिकूटेषु तथा चूलाः चतुर्वनतरुषु जिनभवनानि । भणितानि जम्बूद्वीपे सदेवकानि शेषस्थानेषु ॥१॥ इति वचने न विरोध: स्यात् । तस्मात्तत्र सिद्धानामायतन मेरास्तीति निश्चितम् । अथ शेषकूटस्वरूपमाह-'कहि णं' क्व खलुइत्यादि--प्रश्नसूत्रं व्यक्तम्, उत्तरसूत्रे 'गोयमा !' हे गौतम ! 'कच्छकूडस्स' कच्छकूटस्य वहां वसते हैं अर्थात् जैसा कूटका नाम है वैसाही उन उन कूटाधिष्ठित देवका नाम है। परंतु यहां पर 'यावत् संभव विधि की प्राप्ति' इस न्याय से सिद्धायतन कूट से भिन्न तीन कूटों में अर्थात् माल्यवदादि में कूट के सदृश नामवाले देव हैं ऐसा समझलेवें । परंतु सिद्धायतन कूटमें सिद्धायतन है देव नहीं हैं अन्यथा 'छसयरि कटेसु तहा चूला चउवण तरुसु जिणभवणा। भणिया जंबुद्दीवे सदेवया सेसठाणेसु ॥१॥ सडसठ कूटों में तथा चूला, चार वन तरुओं में जिन भवन कहे है शेष स्थानों जंबूद्वीप में देव सहित कहें है, इस वचन में विरोध नहीं आता हैं। अतः सिद्धायतन कूट में सिद्धों का आवासही है यह निश्चित होता है अब शेष कूटों के स्वरूप का निरूपण करते हैं'कहि णं भंते ! हे भगवन् कहांपर 'मालवंते सागरकडे णाम' माल्यवन्त सागरकट नामका 'कूडे पण्णत्ते' कूट कहा है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा!' हे गौतम ! 'कच्छ कूडस्स' चोथा कच्छकूड के 'उत्तरपुरस्थि નામ સરખા નામવાળા દેવ ત્યાં વસે છે. અર્થાત્ જેવું કૂટનું નામ છે. એવાજ નામવાળા તે તે કૂટાધિષ્ઠિત દેવ છે. પરંતુ અહીંયાં યાવત્સભવ વિધિની પ્રાપ્તિ એ ન્યાયથી જુદા ત્રણ કૂટમાં અર્થાત્ માલ્યવદાદિમાં કૂટના સરખા નામવાળા દેવ છે. તેમ સમજી લેવું પરંતુ સિદ્ધાયતન ફૂટમાં સિદ્ધાયતન દેવ નથી. નહીંતર 'छसयरि कूटेसु तहा चूला चउणतरुसु जिणभवणा । भणिया जंबुद्दीवे सदेवया सेसठाणेसु ॥ १ ॥ જંબુદ્વીપમાં સડસઠ ફૂટોમાં તથા ચૂલા, ચાર વન તરૂઓમાં જીનભવને કહેલા છે. બાકીના સ્થાને દેવ સહિત કહ્યા છે. આ વચનમાં વિરોધ આવતું નથી. તેથી સિદ્ધાયતન ફૂટમાં સિદ્ધોને આવાસ જ છે. એ વાત નિશ્ચિત થાય છે. वे माडीना छूटाना २१३५नु नि३५५५ ४२वामां आवे है.-'कहिणं भंते ! 'मापन ४५i in 'मालवते सागरकूडे णाम' भास्यवान् सागर छूट नामन'कूडे पण्णत्ते' कूट से छ? सा प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री हे छ-'गोयमा ! गौतम ! 'कच्छकूडस्स' या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy