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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. २१ यमका राजधान्योर्वर्णनम् दारा पण्णत्ता' त्रीणि द्वाराणि प्रज्ञप्तानि, तेषां मानाद्याह- ते णं दारा' तानि खलु द्वाराणि 'दो जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं' द्वे योजने ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, 'जोयणं विक्खंभेणं' योजनं विष्कम्भेण-विस्तारेण, 'तावइयं चेव तावदेव-योजनप्रमाणमेव 'पवेसेणं' प्रवेशेन-सभान्तःप्रवेशस्थलावच्छेदेन प्रज्ञप्तानीति पूर्वेण सम्बन्धः, त्रीण्यपि 'सेया वण्णओ' वर्णेन श्वेतानि-शुक्ल. वर्णानि, इत्युपलक्षणं सम्पूर्णद्वारवर्णकस्य एतदेवाह-वर्णकः-सम्पूर्णों वर्णनपरः पदसमूहोऽत्र बोध्यः, स च किम्पर्यन्तः ? इत्याह-'जाव वणमाला' यावद् वनमाला-वनमालापदपर्यन्तः, अयं वर्णकोऽष्टमसूत्राद्विजयद्वारवर्णकानुसारेण सन्याह्यः, ___अथ मुखमण्डपादि षट्कं निरूपयितुमाह-'तेसि गं' इत्यादि-'तेसि णं' तेषाम्-अनन्तरोक्तानां खलु त्रयाणां 'दाराणां पुरओ' द्वाराणां पुरतः-अग्रे 'पत्तेयं२' प्रत्येकम्२-एकैकस्य 'तओ मुहमंडवा' त्रयो मुखमण्डपा:-मुधर्मासभाद्वाराग्रवतिनो मण्डपा:-देवजनाश्रयाः 'पण्णत्ता' तीन द्वार कहे हैं 'ते णं दारा' वे द्वार 'दो जोयणाई उद्धं उच्चत्तण' दो योजन के ऊंचे 'जोयणं विक्खंभेणं' एक योजना इनका विस्तार है, 'तावइयं चेव पवेसेणं' इतना ही इनका प्रवेश कहा है । तीनों द्वार 'सेया वण्णओ' श्वेतवर्ण वाले कहे हैं । यहां पर श्वेत पद उपलक्षण है अतः संपूर्ण द्वार का वर्णन करने वाले पद समूह यहां कहलेवें । वह वर्णन कहां तक कहना चाहिए ? इस शंका की निवृत्ति के लिए कहते है 'जाव वणमाला' वनमाला पद पर्यन्त वर्णन यहां ग्रहण करलेवें। वह वर्णन आढवे सूत्र में विजय द्वार वर्णन में कहा है अतः तदनुसार यहां पर वर्णित करलेवें। __ अब सूत्रकार मुखमण्डपादि का निरूपण करते है 'तेसिं णं दाराणं' आगे कहे गए तीनों द्वारों के 'पुरओ' आगे 'पत्तेयं पत्तेयं प्रत्येक के 'तओ मुहमंडवा' तीन मुख मण्डप-सुधर्म सभाके द्वारके आगे रहे हुवे मण्डप 'पण्णत्ता' कहे हैं४ा छे. 'तेणं दारा' दो। 'दो जोयणाई उद्धं उच्चत्तेण' में योजना या 'जोयण विखंभेण' से २८ तना विस्तार छ. 'तावइयं चेव पवेसेणं' मेरो १ मेना प्रवेश ४ छ. ये ऋणेय वारे। 'सेया वण्णओ' घाना डावानु ४ह्यु छ, અહિંયાં શ્વેત પઢ ઉપલક્ષણ છે. તેથી સંપૂર્ણ કારોનું વર્ણન કરનારા પદસમૂહ અહીં કહી લેવા જોઈએ એ વર્ણન કયાં સુધી કહેવાનું છે ? એ આ શંકાના સમાધાન भाट सू४२ ४३ छ. 'जाव वणमाला' बनमारा ५४ सुधीन से न ही अ श લેવું. એ વર્ણન આઠમાં સૂત્રમાં વિજય દ્વારના વર્ણન પ્રસંગમાં કહેવામાં આવેલ છે, તેથી તેના વર્ણન પ્રમાણે અહીં વર્ણન કરી લેવું. वे सूत्र४२ भृमम पाहनु नि३५४ ४२i ४३ छ-'तेसिंणं दाराण' मा ४सा त्रा द्वारानी 'पुरओ' मा 'पत्तेयं पत्तेयं' हरेन। 'तओ मुहमंडवा' ऋण भुम भ७५ मेट सुधम समाना दारी २मा । भ७५ 'पण्णत्ता' । छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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