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________________ प्रकाशिका टीका चतुर्थवक्षस्कार: सू. २१ यम का राजधान्योर्वर्णनम् २१३ तदद्धुच्चत्तप्पमाणमितेहिं पासायवडेंस एहिं सन्त्रओ समंता संपरिक्खित्ता' एतच्छाया प्राग्वत् व्याख्यातु-ते- द्वितीयपरिधिगताः षोडशप्रासादावतंसकाः खलु प्रत्येकमन्यैश्रतुर्भिस्तदर्द्धाच्चत्व प्रमाणमात्रैः- मूलप्रासादापेक्षयाऽष्टांशप्रमाणञ्चत्वविष्कम्भायामैः सर्वतः समन्तात् सम्परिक्षिप्ताः, अत एव तृतीयपक्तिगताः प्रासादाश्चतुष्षष्टिः, एपामुच्चत्वादिकं सूत्रकृत् स्वयमाह'ते णं पासायवडेंसगा' ते - चतुष्षष्टिरपि प्रासादावतंसकाः खलु 'साइरेगाइ " सातिरेकाणि - भर्द्धक्रोशाधिकानि 'अद्धट्टमाई' अर्द्धाष्टमानि - सार्द्धसप्त 'जोयणाई' योजनानि 'उद्धं उच्च'तेणं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, 'साइरेगाई' सातिरेकाणि - सार्द्धक्रोशाष्टमांशाधिकानि 'अद्धट्ठजोय'गाई' अध्युष्टयोजनानि - अध्युष्टानि - सार्द्ध तृतीयानि योजनानि ' आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेन- दैर्ध्य - विस्ताराभ्याम् एषां सर्वेषां 'वण्णओ' वर्णकः - वर्णनपरः पदसमूहः 'सीहासणा सपरिवारा' सिंहासनानि च सपरिवाराणि - सामानिकादि सुरपरिवाराणां भद्रा अब 'तइय पासा पंती' तीसरी प्रासादपंक्ति का वर्णन करते हैं - तेणं पासा - यवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं तदद्धुच्चत्तपमाणमितेहिं सव्वओ समता संपरिवित्ता' दूसरी परिधिगत सोलह प्रासादावतंसक प्रत्येक दूसरे उससे आधे ऊंचे ऐसे चार प्रासादावतंसक की जो मूल प्रासाद की अपेक्षा अष्टमांश प्रमाण एवं आयामविष्कंभ से चारों तरफ संपरिक्षिप्त कहे हैं । अतः तीसरी पंक्तिगत चोसठ प्रासाद होते हैं । उसका उच्चत्वादि सूत्रकार स्वयं कहते हैं - ' तेणं पासायवडे - सगा' वे ६४ चोसठ प्रासादावतंसक 'साइरेगाई' आधा कोस अधिक 'अट्टमाइं जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं' साडे सात योजन ऊंचे कहे हैं। 'साइरेगाई' कुछ अधिक 'अजोयणाई आयाम विक्खंभेणं' साडे सात योजन के आयाम विष्कंभवाले कहे हैं । इन सबका 'वण्णओ' वर्णन परक पद समूह 'सीहासणा सपरिवारा' परिवार सहित सिंहासन अर्थात् सामानिकादि देव के परिवार के भद्रासन रूप जोयणाई आयामविसंभेणं' साडा सात योजन भेटसी तेनी संमाह पडोजा अडेस छे. ये 'तइय पास पंती' त्री साहति पर्यन स्वामां आवे छे.- 'तेणं पासायवडेंसगा अण्णेहि ं चउहिं तदधुच्चत्तपमाणमित्तेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' ખીજી પરિધિગત સેળ પ્રાસાદાવતસકે। દરેક ખીજા તેનાથી અધિ ઉંચાઇવાળા એવા ચાર પ્રાસાદાવતસકે કે જે મૂત્ર પ્રાસાદના કરતાં આઠમાં ભાગ જેટલા પ્રમાણના આયામ અને વિક ભવાળાથી ચારે બાજુ વી'ટાયેલ કહ્યા છે. રીતે ત્રીજી પંક્તિના ચેાસઠ आसाहो थाय छे. तेनी या विगेरे प्रमाणु सूत्रहार स्यं तावे छे.- 'ते णं पासायवडें सगा' थे ६४ आसाहावत' सी 'साइरेगाई' अर्धा गाउ अधि 'अट्टमाई जोयणाई उद्ध उच्चण' साडा सात योगन भेटला या उडेल छे. 'साइरेगाई' ४४४ वधारे 'अद्धट्ट जोयणाई आयामक्खिमेणं' साडा सात योजन भेटना आयाभ विष्ठाणा डेस छे. मंधाना 'वण्णओ' वान' यह 'सहासणा सपरिवार' परिवार साथै सिद्धासन આ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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