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________________ २१३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पङ्क्तिः , तत्सूचकपाठश्चैवम्-'तेणं पासा बडें सगा अण्णेहिं चउहिं तदधुच्चत्तप्पमागमित्तेहिं पासायव.सएहिं सव्वो समंता संपरिक्खिता' एतच्छाया-पाठमात्रगम्या, व्याख्यातु-ते-प्रथमपङ्क्तिगताश्चत्वारः खलु प्रासादावतंसकाः प्रत्येकम् अन्यैः-स्वभिन्नैः चतुभिः तदोच्चत्वप्रमाणमात्रै-मूलपासादोत्सेधविष्कम्भायामम्पन्नैः-मूलप्रासादापेक्षया चतुर्भागप्रमाणैः प्रासादैः संपरिक्षिताः, इति, अत एव चतुर्दिक्षु चत्वारश्चत्वार इति संकलनया सर्वे पोडश प्रासादाः, एषामुच्चत्वादिकं तु सूकृत साक्षादेवाह-'तेणं पासाय. वडेंसगा' ते खलु प्रासादावतंसका:-'साइरेगाई" सातिरेकाणि-अर्द्धक्रोशाधिकानि : पद्धसोळसजोयणाई' आर्द्धषोडशयोजनानि-सार्द्धपश्वदशयोजनानि 'उद्धं उच्चत्तेणं' ऊर्ध्वमुच्चस्वेन, 'साइरेगाइ” सातिरेकाणि-क्रोशचतुर्थीशाधिकानि 'अट्टपाइ' अर्द्धाष्टमानि-सार्द्धसप्त 'जोयणाई' योजनानि 'आयामविक्खंभेणं' आयाम विष्कम्भेण इति २, अथ 'तइयपासायपंती' तृतीयप्रासादपङ्क्तिः -तत्सूचकपाठ एवम्-'ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहि चउहिं की और ऊंचा कहा है। 'साइरेगाई' बु.छ अधिक अद्धसोलम जोयणाई' आयामविक्खंभेणं' साडे पंद्रह योजन उसकी लंबाई चोडाइ कही है। अब दूसरी प्रासादपंक्ति सूचक पाठ इस प्रकारहै-'तेणं पासायव.सया भण्णेहिं चरहिं तदधुच्चत्त पमाणमित्तहि पासायवडेंस एहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' प्रथम पंक्ति में कहे गए चारों प्रासादावंतलक, दूसरे उससे आधि ऊंचाइवाले मूलप्रासाद से आधे उत्सेध आयामविष्कंभ वाले मूल प्रासाद की अपेक्षा चतुर्भाग प्रमाणवाले चार प्रासादों से परिवेष्टित कहे हैं, इस प्रकार चारों दिशाओं में चार-चार कहने से १६ सोलह प्रासाद हो जाते हैं। उनकी ऊंचाइ आदि मान सूत्रकार स्वयं कहते हैं-'तेणं पासायवडेंसगा' वे प्रासादावतंसक 'सातिरेगाई' अधे कोस अधिक 'अद्धसोलस जोयणाई' साडे पन्द्रह योजन 'उर्दू उच्चत्तग' ऊंचा कहा 'साइरेगाई पाव कोस अधिक 'अट्ठमाई जोयणाई आयामविक्खंभेणं' साडेसात योजनका इनका आयामविष्कंभकहा है। कोसं च उद्धं उच्चत्तेणं' यान अने से 13 220 या ह्या छे. 'साइरेगाई' ४४४ पधारे 'अद्धसोलस जोयगाई आयामविखंभेणं' सा७१ ५४२ यानी तेनी and पापा छे. व भी प्रात सधी पाई 3 छ-'ते णं पासायवडे सगा अण्णेहि चउहि तदधुच्चत्तपमाणमित्तेहि पासायबडे सराहे सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' पड़ती પ્રાસાદ પંક્તિમાં કહેલ ચારે પ્રાસાદાવત એક બીજા તેનાથી અદ્ધિ ઉંચાઈવાળા મૂલ પ્રાસાદથી અર્ધા આયામ વિદ્ધભ અને ઉભેધવાળા મૂલ પ્રાસાદના કરતાં ચતુભોગ પીમાણુવાળા ચાર પ્રાસાદથી વીંટાયેલ છે. આ રીતે ચારે દિશામાં ચાર ચાર કહેવાથી ૧૯ સોળ मासाही २७ onय छे. तेनी या वगेरे प्रभार सूत्रा२ स्वयं मताव छ.-'तेणं पासाय. वडेंसगा' से प्रासाहात 'सातिरेगाइं अघों 34s 'अद्धसोलस जोयणाई' सा1५२ यान 'उद्धं उच्चत्तण' या ४९८ छ, 'साइरेगाई' ५। 13 मधि: 'अट्ठमाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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