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________________ १६० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र अत्रान्तरे खलु द्वौ प्रासादावतंसको-प्रासादोत्तमौ 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्तौ, तयोर्मानमाह- तेणं' इत्यादि, 'तेणं पासायवडिंसगा' तौ खलु प्रासादावतंसको 'बावढि जोयणाई अद्धजोयणं च' द्वापष्टिं योजनानि अर्द्धयोजनम् -योजनस्यार्द्धम् च 'उद्धं उच्चत्तेणं इक्कतीसं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन एकत्रिंशत्संख्यानि 'जोयणाई' योजनानि 'कोसं च' क्रोशम्-एकं क्रोशं च 'आयामविक्खं. भेणं' आयामविष्कम्भेण-दैर्घ्य विस्ताराभ्याम् प्रज्ञप्ताविति पूर्वेण सम्बन्धः, 'पासायवण्णओ' प्रासादवर्णकः-प्रासादवर्णकः-वर्णनपरः पदसमूहो 'भाणियब्वो' भणितव्यः-वक्तव्यः, सच राजप्रश्नीयसूत्रस्याष्टषष्टितमसूत्रस्य मत्कृतसुबोधिनी टीकातो बोध्यः, 'सीहासणा सारिवारा' सिंहासनानि सपरिवाराणि-इतरसिंहासनसहितानि मुख्य सिंहासनानि वर्णनीयानि तद्वर्णनमष्टममत्रस्य टीकातो बोध्यम् तत् किम्पर्यन्तम् ? इत्याह 'जाव' यावत् 'एत्थ णं' इत्यादि-'एत्थ गं' अत्र-प्रासादस्थसिंहासनोपरि खलु 'जमगाण' यमकयोः-यमकनाम्नोः अर्थातू उत्तम महल 'पण्णत्ता' कहे हैं । प्रासाद का नाम कहते हैं-'तेणं' इत्यादि 'तेणं पासायवडे सगा' वे प्रासादावंतसक 'बावहि जोयणाइं अद्धजोयणं च' अर्द्ध योजन युक्त बासठ योजन 'उद्धं उच्चत्तणं' उपरकी और ऊंचाई वाले हैं 'एकत्तीसं जोयणाई' इकतीस योजन 'कोसं च' और एक कोस उनका 'आयाम विक्खंभेणं' आयाम विष्कम्भ वाले अर्थात् इन प्रासादों का विस्तार 'पण्णत्ता' कहा है 'पासायवण्णओ' प्रासाद का वर्णन 'भाणियवो' यहां पर कहलेने चाहिए। वह वर्णन राजप्रश्नीय सूत्रके ६८ अडसठवे सूत्र में मेरे द्वारा की गई सुबोधिनी नाम की टीका से जान लेवें। 'सीहासणा सपरिवारा' यहां परिवार सहित सिंहासनों का वर्णन करलेवें वह वर्णन आठवें सूत्रकी टीकासे ज्ञात करलें। यह वर्णन कहां तक ग्रहण करना इसके लिए कहते हैं 'जाव' यावतू 'एत्थ णं' प्रासादमें रहे हुवे सिंहासनके ऊपरमें 'जमगाणं' यमक नामके 'देवाणं' देवके अर्थात् यमक पर्वत के अधिपति वे भानु भा५ ४ामा भाव 2. 'तेणं' या 'तेणं पासायवडेंसगा' ते उत्तम भडस 'बावर्द्धि जोअणाई अद्धजोयणं च' साल मास योगन 'उद्धं उच्चत्तेणं' S५२नी त२६ या छ. 'इक्कतीसं जोयणाई' त्रिीस योगन 'कोसंच मन मे 3G 'आयामविक्खंभेणं' मायाम विना अर्थात् टस से प्रासाहीना विस्तार ‘पण्णत्तो' ४डेवामां आवे छे 'पासायवण्णओ' प्रासानुस पूर्णपएन 'भाणियव्वो' मी ही लेन. ते न राप्रश्नीय सूत्रन। १८ २५सभा सूत्रनी મેં કરેલ સુધિની ટીકામાંથી સમજી લેવું. ____ 'सीहासणा सरिपवारा' या परिवार सहित सिहासनानुन ४ नये. તે વર્ણન આઠમા સૂત્રની ટીકામાંથી સમજી લેવું. એ વર્ણન અહિયાં ક્યાં સુધીનું લેવું તેને माट 'जाव' यावत 'एत्थणं' प्रासाहीनी १२ २२सा सिंहासनानी 3५२ 'जमगाणं देवाणं' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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