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________________ १८८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र यमकसंस्थानसंस्थितौ-यमकौ-युग्मजातौ भ्रातरौ तयोर्यत् संस्थानम्-आकारविशेषस्तेन संस्थितौ-परस्परं सदृशसंस्थानौ, यद्वा-यमका:-पक्षिविशेषास्तत्संस्थिती, संस्थानं चानयो मलादारभ्य शिखरं यावत् ऊवीकृत गोपुच्छवत्क्रमिक हासवत्प्रमाणत्वेन बोध्यम् , तथा 'सव्वकणगामया' सर्वकनकमयौ-सर्वात्मना स्वर्णमयी 'अच्छा सण्हा' अच्छौ श्लक्ष्णौ पत्तेयं२' प्रत्येकम् २-एकैक एकैकः इति द्वौ पृथक् स्थितौ 'पउमवरवेइयापरिक्खित्ता' पद्मवरवेदिका परिक्षिप्तौ--पदमवरवेदिका परिवेष्टितौ 'पत्तेयं२' प्रत्येकं २ 'वणसंडपरिक्खित्ता' वनषण्डपरि. क्षिप्तौ-वनषण्डपरिवेष्टितौ, अत्रैवानन्तरोक्तयोः पद्मवरवेदिका-वनषण्डयोः प्रमाणाद्याह'ताओ गं' इत्यादि-'ताओ णं' ताः प्रागुक्ताः खलु 'पउमवरवेइयाओ' पद्मवरवेदिकाः 'दो गाउयाई द्वे गव्यते-चतुरःक्रोशान 'उद्धं उच्चत्तेणं' उर्ध्वमुच्चत्वेन 'पंच धणुसयाई पश्चधनुःशतानि-पञ्चशतधषि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण विस्तारेण, 'वेइयावणसंडवण्णओ' वेदिका नसे संस्थित अर्थात् परस्परमें समान संस्थान वाले ये यमक पर्वत है अथवा यमकनामके पक्षिविशेष के आकार के जैसा आकार वाले ये यमक पर्वत है । अर्थात् इसका संस्थान मूलसे शिखर पर्यन्त ऊंचे उठाए गए गाय के पुच्छ के आकार जैसे आकार वाले अर्थात् क्रमिक तनु होते जानेवाले प्रमाण वाला ये पर्वत है। ये यमक पर्वत 'सव्व कणगामया' सर्वात्मना सुवर्णमय है 'अच्छा सण्हा' अच्छ एवं श्लक्ष्ण है। 'पत्तेय २' प्रत्येक पृथक पृथक रहे हुए हैं अर्थात् दोनों अलग अलग स्थित है। 'पउमवरवेइया परिक्खित्ता' पद्मवर वेदिका से परिवेष्टित है 'पत्तयं २ वणसंडपरिक्खित्ता' वनषण्ड से प्रत्येक परिवेष्टित है। अब पद्मवरवेदिका एवं बनषण्ड का प्रमाण कहते हैं-(ताओ णं) इत्यादि (ताओणं) पहले कही हुई 'पउमवरवेइयाओ' पद्मवरवेदिका (दो गाउयाई) दो गव्यूत अर्थात् चार कोस की 'उद्धं उच्चत्तेणं' उपर की और ऊंची है 'पंच धणु'जमगसंठाणसंठिया' यम सस्थानथा सस्थित अर्थात् मन्यान्य समान संस्थानका આ યમક પર્વત છે. અથવા યમક નામધારી પક્ષિ વિશેષના આકાર જેવા આકારવાળા આ યમક પર્વત છે. અર્થાત્ તેમનું સંસ્થાન મૂળથી શિખર સુધી ઉચુ કરવામાં આવેલ ગાયના પૂંછડાના આકાર જેવા આકારવાળા એટલે કે કમકમથી પાતળા પડતા જતા પ્રમાણે वा मा ५४ पति छ. मा यम: ५५'त 'सव्व फणगामया' सामना सोनाना छ. 'अच्छा सण्हा' १२छ भने समय छे. 'पत्तयं पते प्रत्ये मला म २४सा छे. 'पउमवरवेइया परिक्खित्ता' ५१२ वय! पीटाया छ. 'पत्तेयं पत्ते वणसंडपरिखित्ता' દરેક વનષડથી વીંટાયેલા છે. वे ५५१२ ३४। भने वन प्रमाएर मताभ भाव छ.-'ताओण त्यात 'ताओणं' पडलi डेवामा भात 'पउमवरवेइयाओ' ५१२३। 'दो गाउयाई में गच्यूत अर्थात् यार IIG 'उद्धं उच्चत्तेणं' ५२नी त२५ यी छे. 'पंच, धणुसयाई" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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