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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे 'पव्वयबहुले' पर्वतबहुलम् अनेकपर्वतव्याप्तम् 'पवाय बहुले' प्रपातवहुलम् प्रपपाता भृगवः पर्वततः पतनस्थानविशेषाः, यत्र मुमूर्षवो जनाः प्राणान् परित्यक्तुं निपतन्ति तैर्बहुलम्, 'उज्झरबहुले, अबझर बहुलम् पर्वततटतो जलाधः पतनव्याप्तम्, 'णिज्झर बहुले' निर्झर बहुलम् पर्वततटात् सदातनजलक्षरणव्याप्तम्, 'खड्डा बहुले' गर्तबहुलम् खड्डा इति प्रसिद्धाः तैर्बहुलम्, 'दरिबहुले' दरीबहुलम् गुहाबहुलम् 'णईबहुले' नदी बहुलम्, 'दहबहुले' हृदबहुलम्, 'रुक्खबहुले' वृक्षबहुलम्, 'गुच्छबहुले' गुच्छबहुलम् गुच्छा:- स्तबकाः, तैर्बहुलम्, 'गुम्मबहुले' गुल्मबहुलं गुल्माः नवमालिकादयस्तैर्व ५८ यहां ऐसे हैं कि जहाँ पर प्रवेश पाना अशक्य है-या कष्ट साध्य है. यहां पर्वतों की अधिकता है तथा उन पर्वतों पर ऐसे ही विशेष स्थान हैं कि जहां से गिरने पर मनुष्य का शरीर चूर २ हो जाता है. यहां अवझर बहुत हैं - जिन पर्वतीय स्थानों से नोचे जल गिरता है उन स्थानों का नाम अवझर है जैसे जबलपुर का -मेडाघाट आदि; यहां निर्झर बहुत हैं -पर्वत के जिन स्थानों से सदा जल झरता रहता है-ऐसे स्थानों का नाम निर्झर है - ऐसे स्थान इस भरतक्षेत्र में अधिकांश हैं । इसी प्रकार यह भरतक्षेत्र "खड्डा बहुले" जगह २ जिस में प्रायः गड्ढे हैं ऐसे स्थानों वाला है - अर्थात् जगह २ गड्ढों वाला हैं " दरि बहुले" पहाड़ों पर जिसके जगह२प्रायः गुफाएँ है ऐसे स्थानों वाला है-अर्थात् गुफाओं की अधिकता वाला हैं " गई बहुले" जगह २ जिसमें प्रायः नदियाँ है ऐसा है "दहबहुले” जगह २ जहां प्रायः द्रह--पानी के कुंड हैं ऐसा है "रुक्ख बहुले" जगह २ जहां प्राय: वृक्ष हैं ऐसा है " गुच्छ बहुले" प्रायः जगह २ जहाँ गुच्छे हैं, ऐसा है जगह २ जहां पर " गुम्म बहुले " ઊંચા-નીચા છે—સથા સમનથી, અહીં ઘણાં રથાના એવાં પણ છે કે ત્યાં પ્રવેશવું અશકય છે- અથવા તે કષ્ટ સાધ્ય છે, અહીં પર્વતેની અધિકતા છે. તેમજ તે પાની ઉપર એવાં એવાં વિશેષ સ્થાન છે કે જ્યાંથી પડી જવાય તે મ ચુસનાશરીરના ભુકકે ભુક્કા થઈ જાય છે. અહીં અવઝરા પુષ્કળ છે. જે પર્વતીય સ્થાનેા પરથી નીચે જળ પડે છે તે સ્થાનેને અવઝર (પ્રપાત) કહે છે જેમકે જખલપુરનેા ભેડાઘાટ વગેરે. અડ્ડી' નિર્ઝારા પુષ્કળ છે, પતના જે સ્થાનેથી સદા જળ ઝરતુ રહે છે એવાં સ્થાનાને નિઝર કહે છે. એવાં સ્થાને आ लरतक्षेत्रमां अधिश याप्रमाणे या भरतक्षेत्र "खड्डा बहुले" उगले ने पगबे જયાં ખાડાએ પુષ્કળ છે એવા સ્થાન વાળુ છે. એટલે કે સ્થાન સ્થાન પર ઘણા ખાડાએ छे. "दरि बहुले" डुगरे। पर घड़ी गुझसे। वागु छे भेटते है सहीं गुहाओ। जून वधारे छे. "णई बहुले" स्थान स्थान पर मां नदीओ। छेवु' मा क्षेत्र छे. "दह बहुले” ठेकुठे आणु नयां आय: द्रयाना हुआ। छे से क्षेत्र छे. "रुक्ख बहुले" 85 ठेकाले नयां धयां वृक्षो छे भेधुं छे. “गुच्छ बहुले" प्राय: हेम्हे क्यों गुरछायो छे मेनु हे. ठेऊठेये त्यां " गुम्म बहुले" गुडमा अधिकांश ३५मां धथा छे मेवु या क्षेत्र छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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