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________________ प्रकाशिका टोका सू. १० भरतक्षेत्रस्वरूपनिरूपणम् हुलम् , 'लया बहुले' लताबहुलम् पद्मलतादिव्याप्तम् , 'वल्लीबहुले' 'बल्लीबहुलम कूष्माण्ड्यादिलताव्याप्तम् , यद्यपि लतावल्ल्योरेकार्थकत्वं तथापीह लतापदेन विस्तार रहिता वल्लीपदेन विस्तारसहिता लता गृह्यत इति तयो मेंदः। 'अडवीबहुले' अटवीबहुलम् , 'सावयबहुले' श्वापदबहुलम्-हिंसकजन्तुव्याप्तम् , 'तणबहुले' तृणबहुलम्, 'तक्करबहुले' तस्करबहुलम्-चौर व्याप्तम् , 'डिंबबहुले' डिम्बबहुलम्-स्वदेशोत्पन्नोपद्रवव्याप्तम् , 'डमरबहुले' डमरबहुलम्-परदेशीराजकृतोपद्रवव्याप्तम्, 'दुभिक्खबहुले' दुर्भिक्षबईलम् दुर्लभा भिक्षा यत्र ते दुर्भिक्षाः कालविशेषाः तैर्बहुलं व्याप्तम् , 'दुक्कालबहुले' दुष्कालबहुलम्-धान्यमहार्यतादिना ये दुष्टाः कालास्तैर्बहुलम् , 'पासंडबहुले' पाखण्ड बहुलम् पाखण्डाः मिथ्यावादास्तैर्बहुलम् , 'किवणबहुले' कृपणबहुलम् कृपणा:-कदा:मितम्पचास्तै 'बहुलम्' 'वणीमगबहुले' वनीपकबहुलम्-वनीपकाः-याचकास्तैर्बहुगुल्म अधिकांश है ऐसा हैं “लया बहुले" जगह २ जहां पर लताओं की विस्तार रहित पमलतादि कों को-प्रधानता है ऐसा है " वल्ली बहुले" विस्तार वाली कूप्माण्डादि वेलों की प्रधानता जहां पर है ऐसा है " अडवी बहुले " जंगलों की जहां पर प्रधानता है ऐसा है "सावय बहुले" जंगली हिंसक जानवरो की जहां पर प्रधानता है ऐसा है "तण बहुले" घासकी जहां के जंगलों में प्रधानता है ऐसा है 'तक्कर बहुले ' तस्करों--चोरों की जहां पर बहुलता है ऐसा है “डिंब बहुले" स्वदेशोत्पन्न जनों से ही जहां पर उपद्रवों की बहुलता है ऐसा है "डमर बहुले" परदेशी राजा के द्वारा किये गये उपद्रवों की जहां बहुलता है ऐसा है "दुभिक्ख बहुले" दुर्भिक्ष की जहां बहुलता है ऐसा है " दुक्काल बहुले" दुष्काल की चीजों को जहां पर बहुत ही अधिक कीमत बढ़गई हो ऐसे कालकी बहुलता वाला है "पासंड बहुले" पाखण्डों-मिंध्या वादियों की जहां बहुलता है ऐसा हैं "किवण बहुले" कृपणजनों की जहां पर बहुलता है ऐसा है “वणीमग बहुले" याचक "लया बदुले" ४४४ च्या तासानी विस्ता२२हीत पासताहिकानी प्रधानता व मात्र छ "वल्ली बहुले” विस्तार प्रधान wile तामे वधारे ५ती छ । क्षेत्र छ. “अडवी बहुलम्" सानीयां प्रधानता छे. मेव। मा प्रदेश छे. "सावय बहुले" साना बनवशनी जयां बसता छ सयुमा क्षेत्र छ. "तण बहुले" रानी न्यांसामा प्रधानता छ आमा क्षेत्र छे. "तक्कर बहुले" तरोनी-थोशनीय मरसताछ मेमा क्षेत्र छ. "डिम्ब बहुले" स्वशात्पन्ननाथायां उपद्रव या थाय छ सेवा मा प्रदेश छे. "डमर बहुले" ५२हेश २ या पद्रव ४२ता छ वा मा प्रदेश छे. " दुब्भिक्खबहुले" हुमक्षनी यां पहुसता छे सेवामा प्रदेश छ. "दुक्काल बहुले" हु.aनी-मेटलेल्या या रतुमानी मतमा मन पधारे वृद्धि थई डाय-मेवानी हुसतावाणी माहेश छे. "पासंड बहुले" या भिल्या. पाहीना rii मरता छ । २ प्रदेश छे. “किवण बहुले" ऐपनानी यां मत।छे सेवामा प्रवेश छे. “वणीमग बहुले" यायनी ज्यां महसताछ सवा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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