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________________ जम्वृद्धीपप्रचप्तिसूत्रे रिवरप्रपातानां समीकरणम् तत्र नरपतेः राज्ञः स्कन्धवारे सेनासमूहसन्निवेशे प्रस्तावाद् गन्तु प्रवृत्ते सति गर्तः गड्डा, इति भाषाप्रसिद्धम् दरी कन्दरा विषमः उन्नताऽवनता प्रारभाराः प्रकृष्टभाराः गिरिवरा अत्र गिरिशब्देन क्षुद्रगिरयो ग्राह्याः ये यात्रोन्मुखानां राज्ञां गच्छन्तः सैन्यसमूहस्य विध्न कराः सन्ति प्रपाताः गच्छतां जनानां स्खलनहेतवः पाषाणाः तेषां समीकरणम् समभागापादकम् 'संतिकर' शान्तिकरम् उपद्रवशान्तिकारकम् ननु यदि उपद्रवोपशामकं तत् तर्हि सति दण्डरत्ने सगरसुतानां ज्वलनप्रभ नागधिप कृतोपद्रवः कथं नोपशशाम इति चेन्न सोपक्रमोपद्रव विद्रावण एव तस्य सामर्थात अनुक्रमोपद्रव विद्रावणे सर्वथा तस्य सामर्थ्याभावात् अतएव विजयमाने वीरदेवे कुशिष्यमुक्ता तेजोलेश्या सुनक्षत्र सर्वानुमतो अन गारो भस्मतां निनायः, 'सुभकरं' शुभकरम् --कल्याणकरम् 'हितकर' हितकरम् उतैरेव गुणा रुपकारकारकम्, पुनः कोदृशम् 'रण्णो हिय इच्छियमणोरहपूरगं' हयं दंडरयणं गहाय सत्तट्ठपयाई पच्चोसक्कइ ) इसदण्ड के अवयव-पञ्चलति का कत्तलिका रूप थे-यह दण्डरत्न वज्र के सार से बना हुआ था समस्त शत्रुओं का और उनकी सेनाओं का यह विनाश करने बाला था ! राजा के सेना समूह के सन्निवेश में -पडाव में गड्ढों को दरीयों को,-कन्दराओं को-ऊंचे नीचे छोटे छोटे पर्वर्ती को, यात्रा के सन्मुख होकर जानेवाले राजाओं की सेना के फिसलकर गिरने में -कारणभूत होते हैं ऐसे पाषाणों को यह सम कर देता है तथा यह-शान्तिकर होता है-उपद्रवों को दूर कर देता है। यहां ऐसी आशंका हो सकतो है कि यदि यह दण्डरत्न उपद्रवों को शान्त करने की शक्तिबाला है तो दण्डरत्न के होने पर भी सगर के पुत्रोंका ज्वलनप्रभनागाधिप द्वारा किया गया उपद्रव शान्त क्यों नहीं हो पाया तो इसका समाधान ऐसो है की यह दण्डरत्न-सोपक्रम उपद्रवों को हो शान्त करने में शक्ति वाला होता है। अनुपक्रम उपद्रवो को शान्त करने की शक्तिवाला नही होता है इसलिए वीर देव के विद्यमान होने पर कुशिष्यमुक्त --तेजोलेश्या ने सुनक्षत्र और सर्वानुमति नामक दो अनगारों को भस्म कर दिया। यह चक्ररत्न शुभकर कल्याणकर होता है एवं हितकर उक्तगुणो द्वारा उपकार સૌન્ય સમૂહને રાગ્નિવેશમાં પડાવમાં ખાડાઓને હરિઓને કંદરાઓને ઊંચા નીચા પર્વને યાત્રા કરતી વખતે રાજાઓની સેના જેમના ઉપરથી લપસી પડે એવા પાષાણને એ સમ કરી નાખે છે. તેમજ એ શાંતિકર હોય છે. ઉપદ્વવેનું ઉપશમન કરે છે અહીં એવી શંકા થાય છે કે જે એ દંડરત્ન ઉપદ્રવને શાંત કરી શકે એવી શકિત ધરાવતું હોય તો દંડરત્ન હોય તે પણ સગરના પુત્રોનું જવલન પ્રભનાગાધિપ વડે કરવામાં આવ્યું તે વખતે ઉપદ્રવને ઉપશમ કેમ થયું નહી તો આ શંકાનું સમાધાન આ પ્રમાણે છે કે આ દંડ રત્ન સોપક્રમ ઉપદ્રવ ને શાંત કરવા સમર્થ હોય છે અનુક્રમ ઉપદ્રને શાંત કરવાની શક્તિ એમાં હોતી નથી. અને એથી જ વીરદેવ વિદ્યમાન હતો છતાં એ કુશિષ્ય મુકતતે લેયાને સુનક્ષત્ર અને સર્વાનુમતી નામક બે અનગારે ને ભરામ કરી નાખ્યા. એ सरत्न शुभ७२-पक्ष्याय ४२ सोय छे. तेभर हित४२ हाय छे (रण्णो हिय इच्छिय मणोरह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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