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________________ प्रकाशिकाटीका तु० ३ वक्षस्कारः सू० १४ तमिस्रागुहाद्वारोद्घाटननिरूपणम् राज्ञः चक्रवर्त्तिनो हृदयेच्छितमनोरथपूर कम्, गुहाकपटोदघाटनादिकार्य करणसमर्थत्वात् 'दिव्वं' दिव्यम् - यक्षसहस्राधिष्ठितमित्यर्थः 'अप्पडिहयं' अप्रतिहतम् - क्वचिदपि प्रतिघातमापन्नम् 'दंडरयणं' दण्डरत्नम् - दण्डनामकं रत्नम् 'गहाय' हस्ते गृहीत्वा 'सत्तपयाई पच्चसक्क ' सप्ताष्टपदानि प्रत्यवष्वष्कते अपसर्पति स सुषेणः सेनापति रिति अत्र सेनापतेः सप्ताष्टपदापसरणं प्रजिहीर्षोः दृढतरप्रहारकरणाय पच्चीस कित्ता' प्रत्यवष्वष्कय - सप्ताष्टपदानि अपसृत्य 'तिमिस्सगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणेण महया महया सद्देणं तिक्खुत्तो आउडेइ' तमित्रगुहायाः दाक्षिणात्यस्य दक्षिणभागवर्तिनो द्वारस्य कपाटौ दण्डरत्नेन महता महता शब्देन त्रिःकृत्व-त्रीन् वारान् आकुयति ताडयति अत्र इत्थंभूतलक्षणे इति तृतीया, यथा प्रकारेण महान् शब्दः उत्पद्यते तथा प्रकारेण ताडयतीत्यर्थः ततः किं जातमित्याह - ' तरणं' इत्यादि करनेवाला होता है । ( रण्णो हियइच्छिय मणोग्हपूरगं ) चक्रवर्ती के हृदय में वर्तमान- इच्छित मनोरथ को पुरा करने वाला है क्यों की यहां गुहा के कपाटों के उद्घाटन आदि कार्योंको करता है । (दिव्यं) यक्ष सहस्र से यह अधिष्ठित होने के कारण दिव्य कहा जाता है (अप्पडियं) यह कहीं भी प्रतिघात को प्राप्तनहीं होता है इसलिए अप्रतिहत कहा गया है इस प्रकार के इन पूर्वोक विशेषणों से युक्त (दंडरयण गहाय दण्डरत्न को हाथ में लेकर ) सत्तट्ठपयाई पच्चीसकईवह सुषेण सेनापति सात आठ पैर पीछे हटा यहां जो प्रतिजिहीर्षसुषेण सेनापति का सात आठ पैर पिछे हटना प्रकट किया गया है वह उसके द्वारा दृढतर प्रहार प्रकट करने के लिए है (पञ्चो कित्ता) सात आठ पैर पिछे हटकर के (तिमिस्सगुहाए दाहिणिल्लस्स दुबारस्स कवाडे दंडरयणेणं महया २ सदेणं तिक्खुत्तो आउडेइ) फिर उस सुषेणसेनापति ने तिमिस्र गुहा के दक्षिण दिग्वर्ती द्वार के किवाडों को दण्डरत्न से जोर जोरसे जिससे शब्दों का निकलना हो इस रूप से तीनचार ताडित किया किवाड़ों पर तीन बार जोर २ से दण्ड कहा गया पूर) यावती ना यमां विद्यमान छत मनोरथ मे रत्नपूर होय छे. भ मे थारत्न गुझना पाटोने उद्घाटित वा वगेरे अरे छे. (दिव्वं) यक्षसहस्त्रोथी भे अधिष्ठित डोवा महस हिव्य वामां आवे छे ( अप्पडिहयं ) मे यत्न अर्थ पशु स्थाने પ્રતિઘાત દશાને પામતું નથી. એથી જ એને અપ્રિત કહેવામાં આવે છે. આ પ્રમાણે એ पूर्वोठित विशेषोधी युक्त ( दंडरयणं गहाय ) इंडेशनने हाथनां सह ने (सत्तट्ठ पयाई पच्चीसकर ) ते सुषेषु सेनापति सत या उगलां पाछे। अस्यो अडी ने प्रतिद्धीषु સુષેણુ સેનાપતિને સાત આઠ ડગલાં પીછે ડઠ કરવાનું લખ્યું છે તે તેના વડે દઢતર પ્રહાર प्रडेंट रवा भाटे उडेमां आवे छे. (पच्त्रोसकित्ता) उगवा पाछो भसीने 'तिमिस्स गुहा दाहलल दुवारस्स कवाडे दंडरयणेणं मद्दया २ सद्देणं तिक्खुत्तो आउडेइ) પાં તે સુષેણુ સેનાપતિએ તિમિસ્ર ગુહાના દક્ષિણુ દિગ્વતી દ્વારના કપાટાને દંડ રત્નથી હેર-જોરથી કે જેનાથી શબ્દ થાય એવી રીતે ત્રણુ વાર તાડિત કર્યા. એટલે કે કમાડા ઉપર Jain Education International ७०३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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