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________________ प्रकाशिकाटीका तृ० ३ वक्षस्कारः सू० १४ तमिस्रागुहाद्वारोद्घाटननिरूपणं ६९९ गैरित्यर्थः 'सेहिं' श्वेतै रययामएहिं ' अच्छरसतण्डुलैः तत्र अच्छो निर्मलो रसो बिम्बो येषां ते अच्छरसाः प्रत्यासन्न वस्तु प्रतिविम्वाधारभूता इव अतिविमला इति भावः एवं भूतैः तण्डुलै : 'तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडाणं पुरओ अट्ठ मंगलए fort' तमिस्रागुहायाः दाक्षिणात्यस्य दक्षिणदिगवर्त्तिनो द्वारस्य कपाटयोः पुरतः अग्रे अष्टाष्टमङ्गलानि स्वस्तिकादयोऽष्टाष्टमाङ्गल्यवस्तुनि आलिखति अ 1-1 सावचनात् प्रत्येकमष्टौ अष्टौ आलीखतीति विज्ञेयम्, तान्येव अष्टप्रदश्यन्ते 'तं जहा । सोत्थिय सिरिच्छं जाव' इति तद्यथा स्वस्तिक १ श्री वत्स २ यावत् नन्दिकावते ३. वर्द्धमानक ४ भद्रासन ५ कलश ६ मत्स्य ७ दर्पणानि अष्टमङ्गलकानि 'आलिहिता' रययामएहिं अच्छर सातंडुलेहिं तिमिस्सगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडाणं पुरओ अट्ठ मंगलए आलिहइ ) चन्दरवा को किवाड़ों के ऊपर बांधकर फिर उसने स्वच्छ महीन चांदी के चावलों से कि जिनमें स्वच्छता के कारण पास में रही हुई वस्तुओं का प्रतिविम्ब पड़ता था । तिमिस्रगुहा के दक्षिण द्वारवर्ती उन किवाड़ों के समक्ष आठ आठ मंगल द्रव्यों का आलेखन किया अर्थात् प्रत्येक मंगल द्रव्य आठ आठ की संख्या में लिखे । "तं जहा " वे आठ मंगल द्रव्य इस प्रकार से हैं --(सोत्थिय - सिरिबच्छ जाव कयग्गह गहिय करयलपन्भट्ठचंदप्पभवइरवेरुलियविमलदंड) स्वस्तिक, श्री वत्स यावत्-नन्द्यावर्त, वर्द्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण । यहां यावत् पद से इस पाठ का ग्रहण हुआ है । (आलिहित्ता काऊरं करे, वारं पाडलमल्लिय चंद्रगअसोग पुण्णाग चूयमंजरी णत्रमल्लिय वकुलतिलग कणवीर कुंदकोज्जय कोरंटय पत्तदमणयवरसुरहिं सुगंधगंधियस्स) इस पाठ का अर्थ इस प्रकार से है- एक एक को आठ आठ रूप में लिखकर फिर उसने उन पर रंग भरा रंग भरकरके फिर उसने उन सब का इस प्रकार से उपचार किया गुलाबके फूल, बेलाके फूल, चम्पक के फूल, अशोक के फूल, करिता अच्छे सण्हेहि रययामपहि अच्छरसातंडुलेहि तिमिस्स गुहाप दार्हिणिल्लस्स दुवारस्य कवाडाणं पुरओ अट्ठट्ठमंगलप आलिहा ) यंदरखाने पाटोनी उपर गांधीने पछी તેણે સ્વચ્છ ઝીણા ચાંદીના ચાખાથી કે જે ચાખાએામાં સ્વચ્છતાને લીધે પાંસે મૂકેલી વસ્તુઓનુ પ્રતિષિ’ખ પડી રહ્યું હતું તિમિસ્ર ગુહાના દક્ષિણુ દ્વારવતી તે કપાટોની સામે આઠ આઠ માંગલ દ્રવ્યેાનું આલેખન કર્યું એટલે કે પ્રત્યેક મંગળ દ્રવ્ય આડે આઠ જેટલી A'vani avu. (á 1) À is an ad. (alfeau-faftass: जाव कयग्गहगहियकरयलप भट्ट ? चंदप्पभवइरवेरु लिय विमलदंड ) स्वस्ति, श्रीवत्स यावत् नधानत, पचमान, भद्रासन, उद्वशः मत्स्य अने हर्ष शु. अडी यावत पहथी आ चाहना संग्रह थयो छे, (आलिहित्ता काउरं करेइ, उवयारंति किंते पाडलमल्लिय चंपग असोग पुण्णाग चूथ मंजरीणवमल्लिय बकुल तिलगकणबीर कुंदकीजय कोरंटय पन्त दमणयवरसुरहि सुगंधगंधियस्स) भा પાઠના અર્થ આ પ્રમાણે છે-એક એક-મગળ દ્રશ્યને આઠ આઠ રૂપમાં લખીને તેણે તેમનો ઉપર રંગ ભર્યાં. રંગ ભરીને પછી તે તેણે તે સર્વોના આ પ્રમાણે ઉપચાર કર્યાં. ગુલાબના પુષ્પા વેલાના પુષ્પા, ચંપકના પુષ્પા” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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