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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे यत्रैव मज्जनगृहं-स्नानगृहं तत्रैव उपागच्छति ‘उवाच्छित्ता' उपागत्य ‘ण्हाए कयबलिकम्मे' स्नातः कृतबलिकर्मा वायसादिभ्यो दत्तान्न भागः पुनः कीदृश 'कयकोउयमंगलपायच्छित्ते' कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्तः पुनश्च 'सुद्धप्पावेसाइं मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए' शुद्ध प्रावेशानि सभा प्रवेशयोग्यानि मङ्गलानि-मङ्गलकारकाणि वस्त्राणि प्रवराणि परिहितः परिगृहीत :अप्पमहग्घाभरणालंकिरिय सरीरे' अल्पमहा_भरणालङ्कृतशरीरः तत्र अल्पम् अल्पभारं महायं बहुमूल्यकमाभरणं तेन अलङ्कृतं शोभितं शरीरं यस्य स तथा एवम् 'धूवपुप्फगंधमल्लहत्थगए' धूपपुष्पगन्धमाल्यहस्तगतः तत्र धूपपुष्पगन्धमाल्यानि हस्ते गतानि यस्य स यथा एवंभूतः सेनापतिः 'मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ मज्जनगृहात् स्नानगृहात् प्रतिनिष्कुमति निःस्सरति 'पडिजिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य निःसृत्य 'जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स कवाडा तेणेव पहारेत्थ गमणाए' यत्रैव तमिस्रागुहायाः दाक्षिणात्यस्य दक्षिणभागवर्तिनो द्वारस्य कपाटौ कपाटश्च कपाटश्च त्रिषु स्यादररं न ना इति वाचस्पतिः तत्रैव गमनाय प्रधारि तवान् गमनसंकल्पं कृतवान् कर वह जहां स्नान गृह था वहां पर गया-(उवागच्छित्ता) वहां जाकर के (हाए कयबलिकम्मे कयको उयमंगलपायच्छित्ते)उसने स्नान किया बलिकर्म किया-काक आदिको के लिये अन्न का वितरण किया , फिर कौतुक मंगल प्रायश्चित्त किये-बादमें (सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए) सभामें प्रवेश करने के लायक, मङ्गल कारक सुन्दर वस्त्रों को पहिरा (अप्पम इग्धाभरणालंकियसरीरे धृवपुप्फगंधमल्लहत्थगए-मज्जगघराओ पडिणिक्खमइ) शरीर पर अल्प पर कीमत में बहुत मूल्य वाले आभरणों को धारण किया हाथ में धूप, युष्प गंध, एवं मालाएँ लीं इस प्रकार से मज धज कर वह स्नान घर से बाहर आया (पडिणिक्वमित्ता जेगेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा तेणेव पहारेत्थ गमणाए) बाहर आकर वह जहां पर तिमिस्त्रागुहा के दक्षिण भागवर्ती द्वारों के किवाड थे उस ओर चल. दिया-(तएणं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहवे) उस समय उस सुषेण-सेनापति के अनेक पौधशाणामांधी पार नीज्यो. (पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणधरे तेणेव उवागच्छइ भने पार नीजी२. ५i स्नान गृह हेतु त्यां गये.. (उवागच्छित्ता) त्यां ने (ण्हाए कयबलिकम्मे कयकाउयमंगलपायच्छित्ते) तेथे स्नना यु भनेपछी मसी में यु એટલે કે કાક વગેરેને અન્ન વિતરિત કર્યું ત્યારબાદ કૌતુક મંગળ અને પ્રાશ્ચિત્ત વિધિ सम्पन्न ४१. अना ५छ। (सुद्धप्पावेसाइं वत्थाई पवरपरिहिए) सभामा प्रवेश ४२१॥ योग्य भय ४२४ वस्त्र पर्या (अप्पमहग्धाभरणालंकियसरीरे धूव पुष्पगंधमल्ल हत्थगए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ) शरीरे 6५२ ५८५ ५ पहुभूख्य सासर धारण र्या डायमा ધૂપ પુષ્પ ગંધ તેમજ માળાએ લીધી અને આ પ્રમાણે સુસજજીત થઈને તે નાનગૃહમાંથી बहा२ माव्या. (पडिणिमित्ता जेणेव तिमिसगुहाए दाहिल्लस्स दुवारस्स कवाडा तेणेव पहारेत्थ गमणाए) ११२ वी यो तिमिसालाना दक्षिण भागवती द्वारा पाटो sala त२३ २वाना थये।. (त एणं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहवे) a समये तसुषे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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