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________________ ३९८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे समुत्पन्नम्, अभिजिता परिनिर्वृतः ॥सू० ४४॥ टीका-'उसभेणं' इत्यादि । 'उसभेणं अरहा पंच उत्तरासाढे' ऋषभः खलु अर्हन् पश्चोत्तराषाढः पञ्चसु उत्तराषाढासु च्यवनजन्मराज्याभिषेकदीक्षाज्ञानलक्षणानि पञ्चकल्याणकानि यस्य स तथाभूतः, 'अभीइछ?' अभिजित्षष्ठः-अभिजिति नक्षत्रे षष्ठंनिर्वाणलक्षणं षष्ठं कल्याणं यस्य स तथाभूतश्च ‘होत्था' अभवत् । तदेवाह-'तं जहा' तद्यथा 'उत्तरासादाहि' उत्तराषाढासु नक्षो 'चुए' च्युतः सर्वार्थसिद्धि नाम्नो महाविमानान्निर्गतः, 'चइत्ता' च्युत्वा 'गब्भं वक्कंते' गर्भ व्युत्क्रान्तः-मरुदेवायाः कुक्षौ, अवतीर्णः । तथा- 'उत्तरासाढाहि जाए' उत्तराषाढासु जात:-गर्भान्निष्क्रान्तः, 'उत्तरासाढाहिं रायाभिसेयं पत्ते' उत्तराषाढासु राज्याभिषेकं प्राप्तः, 'उत्तरासाढाहि मुडे भवित्ता अगाराओ' जिन २ नक्षत्र में जन्मादिक कल्याणक भगवान् के हुए हैं उन २ नक्षत्रों के प्रदर्शन पूर्वक अब सूत्रकार प्रभु के जन्मकल्याणक का कथन कहते हैं--. "उस भेणं अरहा पंचउत्तरासाढे' इत्यादि। टीकार्थ- "उसभेणं अरहा पंच उत्तरासाढे" ऋषभनाथ भगवान पांच उत्तर नक्षत्रों में च्यवन कल्याण वाले, जन्मकल्याण वाले, राज्यभिषेक कल्याण वाले और दीक्षा कल्याण वाले हुए हैं, तथा “अभिइ छट्रे होत्था" अभिजित् नामके नक्षत्र में वे निर्माण कल्याण वाले हुए है "तं जहा" इसी विषय का स्पष्टो करण अब सूत्रकार करते हुए कहते है-"उत्तरासाढेहिं चुए चइत्ता गन्भं वक्कंते उत्तरासाढाहिं जाए" ऋषभनाथ भगवान् सर्वार्थद्धि नामके महाविमानसे उत्तराषाढ नक्षत्र में निर्गत होकर उसी उत्तराषाढ नक्षत्र में मरुदेवाको कुझि में अवतीर्ण हुए, उत्तराषाढ नक्षत्र में ही वे राज्यपद में अभिषिक्त हुए, “उत्तराषाढाहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पचहए" उत्तराषाढनक्षत्र में ही वे मुण्डित होकर अगारावस्था से अनगारावस्थामें प्रवजित हुए और જે જે નક્ષત્રમાં જન્માદિ કલ્યાણક ભગવાનને થયાં છે તે નક્ષત્રોને પ્રદર્શિત કરીને હવે સૂત્રકાર પ્રભુના જન્મકલ્યાણકનું કથન કરે છે ? 'उसमेणं अरहा-पंच उत्तरासाढे' इत्यादि सूत्र ॥४४॥ टा--"उसमेणं अरहा पंच उत्तरासाढे' मनाथ भगवान पांय 6त्तराषाढ नक्षત્રોમાં યવન કલ્યાણુવાળા. જન્મકલ્યાણવાળા, રાજ્યાભિષેક કલ્યાણવાળા અને દીક્ષાકલ્યાણवाणा या छ, तथा 'अभिइछठे होत्था' मलितनामना नक्षत्रमा तानिale या वाणा थय। छे. 'त जहा' से (वये २५ष्टता ४२ता हुवे सूत्रा२४ छ । 'उत्तरासादाहिं चए वइत्ता गम्भ वक्कंते उत्तरासाढाहि जाप' ऋषभनाथ भगवान सा सिद्धनामना महान માનથી ઉત્તરાષાઢા નક્ષત્રમાં નિર્ગત થઈ ને. તે ઉત્તરાષાઢા નક્ષત્રમાં જ મરુદેવાની કુક્ષિમાં भवती थया. उत्तराषाढ नक्षत्रमा न्य५ मनिषित थया. 'उत्तरासादाहि मंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए' उत्तराषाढ नक्षत्रमा तेसो भुडित अमाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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