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________________ १६४ जम्बूद्धोपप्रप्तिसूत्रे सण्हिआइवा सण्हिसण्हिआइ वा उद्धरेणूइ वा तसरेणूइ वा रहरेणूइ वा वालग्गेइ वो लिक्खाइ वा जूआइ वा जवमज्झेइ वा उस्सेहंगुलेइ वा अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगासण्ह सण्हिया, अट्ठ सहसण्हियाओ सा एगा उद्धरेणू , अट्ठ उद्धरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तासरेणूओ सा एगा रहरेणू अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुरूत्तरकुराण मणुस्साणं वालग्गे अट्ठ देवकुरूत्तरकुराण मणुस्साण वालग्गा से एगे हखिासरम्मयवासाण मणुस्साणं वालग्गे, एवं हेमवयहेरण्ण्वयाण मणुस्साणं पुनविदेह अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गा सा एगा लिक्खा अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जूआ अट्ठ जूआओ से एगे जवमज्झे अट्ठ जवमज्झा से एगे अंगुले. एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पाओ, बारस अंगुलाई विहत्थी, चउवीसं अंगुलाई रयणी, अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी, छण्णउइ.अंगुलाई से एगे अक्खेइवा, दंडेइ वा, धणूइ वा, जुगेइ वा, मुसलेइ वा, णालिआइ वा, एएणं धणुप्पमाणेणं दो धणुसहस्साई गाउयं, चत्तारि गाउयाई जोयणं, एएण जोयणप्पमाणेणं जे पल्ले जोयणं आयामविक्खंभेणं जोयणं उ8 उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेस परिक्खेवेणं । से णं पल्ले एगाहिय बेहिय तेहिय उक्कोसेणं सत्तरत्तप ढाणं संमढे सण्णिचिए भरिए वालग्गकोडीणं । तेणं बालग्गा णो कुत्थेज्जा, णो परिविडंसेज्जा णो अग्गी डहेज्जा णो वाए हरेज्जा, णो पूइत्ताए हव्यमागच्छेज्जा, तओणं वाससए २ एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्लेखीणे णीरए पिल्लेवे णिट्ठिए भवइ सेतं पलिओवमे । एएसि पल्लाणं कोडाकोडी हवेज्ज दस गुणिआ । तं सागरोवमस्स उ एगस्स भवे परिमाणं ॥१॥ एएणं सागरोवमप्पभाणेणं चत्तारि सोगरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा १ तिण्णि सागरावमकोडाकोडीओ कालो सुसमा२ दो सागरोवमकोडाकडीओ कालो सुसमदुस्समा ३ एगा सागरोवमको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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