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________________ संहिताकी जिस प्रतिसे हमने ये गाथायें लिखी हैं वह बहुत ही अशुद्ध है और इस कारण यद्यपि इनसे पूरा पूरा और स्पष्ट अर्थाववोध नहीं होता है, फिर भी ऐसा मालूम होता है कि इस इन्द्रनन्दिसहितासे भी पहले कोई इन्द्रनन्दिसंहिता थी, जिसे इस संहिताके का प्रमाण माननेको कहते हैं और इन्द्रनन्दिका बनाया हुआ कोई पूजाग्रन्थ भी था । यदि यह ठीक है और हमारे समझनेमें कोई भ्रम नहीं है तो फिर छेदपिण्डके कर्ताका समय अय्यपार्यके पहले नहीं माना जा सकता। ___ इन गाथाओंमें वसुनन्दि, एकसन्धि, और माघनन्दिका भी नाम आया है । इनमेंसे वसुनन्दिका समय विक्रमको बारहवीं शताव्दिके लगभग निश्चित किया जा चुका है और एकसन्धि वसुनन्दिसे भी कुछ पोछे हुए हैं। अब रहे माघनन्दि, सो यदि वे कुन्दकुन्दाचार्यसे पहले कहे जानेवाले सुप्रसिद्ध माघनन्दि आचार्य नहीं हैं और दूसरे माघनन्दि हैं जिन्होंने माघनन्दिश्रावकाचार नामक संस्कृतकनड़ी ग्रन्थकी रचना की है और जिनकी बनाई हुई एक संहितांका भी उल्लेख स्व. बाबा दुलीचन्दजीने अपनी ग्रन्थसूची में किया है, तो उनका समय कर्नाटककविचरित्रके कर्ताने वि० संवत् १३१७ निश्चय किया है और ऐसी दशामें छेदपिण्डके कर्ताका समय उनसे पीछे विक्रमकी चौदहवीं शताब्दिके पूर्वार्धके बाद मानना होगा। परन्तु जब तक यह पूर्णरूपसे निश्चय न हो जाय के कनोटककविचरित्रके कर्ताने जिनका समय निश्चित किया है, उन्हींका उल्लख संहिताकी उक्त गाथाओंमें है, तब तक इस पिछले समय पर आधिक जोर नहीं दिया जा सकता। फिर भी यह बात तो निस्सन्देह कही जा सकती है कि छेदपिण्डके कर्ता विक्रमकी १३ वीं शताब्दिके पहलेके तो कदापि नहीं हैं। जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय और इन्द्रनन्दिसंहिताके पूर्वोक्त श्लोकों और गाथाओंमें जिन जिन आचार्योंका उल्लेख है, उनमेंसे नीचे लिखे आचार्योंके पूजा और संहिताग्रन्थोंका अस्तित्व अभीतक है, ऐसा स्वर्गीय बाबा दुलीचन्दजीकी संस्कृत ग्रन्थसूचीसे मालूम होता है । यह सूची हमने जेठ सुदी रविवार संवत् १९५४ की १ देखो जैनहितैषी भाग १२, पृ० १९२ । २ शास्त्रसारसमुच्चय नामका ग्रन्थ भो माघनन्दि आचार्यका बनाया हुआ है। यह माणिकचन्द्रग्रन्थमालामें शीघ्र ही छपेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003152
Book TitlePrayashchitta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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