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________________ लिखी हुई प्रतिपरसे नकल की थी । हम नहीं कह सकत कि यह सूचा कहा तक प्रामाणिक हैफिर भी सुना गया है कि बाबाजीने जगह जगहके ग्रन्थभाण्डारोंको स्वयं देखकर इसे तैयार किया था। कई ग्रन्थोंके नामके साथ यह भी लिखा है कि उक्त ग्रन्थ अमुक जगह मौजूद है । १ वीरसेनस्वामी ... पूजाकल्प। २ वसुनन्दिस्वामी संहिता। ३ माघनन्दि ... ... संहिता (वृन्दावनके घर है ) ४ जिनसेन ... ... पूजाकल्प, पूजासार। ५ इन्द्रनंदि ... ... पूजाकल्प ( संस्कृत ), संहिता । ६ गुणभद्र ... पूजाकल्प। ७ देवनन्दि (पूज्यपाद)... पूजाकल्प । ८ एकसन्धि ... ... पूजाकल्प । ९ हस्तिमल्ल ... ... गणधरवलय-पूजाकल्प । इनमेंसें वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र और पूज्यपादके पूजाविषयक स्वतंत्र ग्रन्थोंका उल्लेख अभी तक किसी भी ग्रन्थमें देखनेमें नहीं आया है । इस लिए इस बातकी बड़ी भारी आवश्यकता है कि उक्त ग्रन्थ संग्रह किये जायें और उनका अच्छी तरह स्वाध्याय किया जाय । संभव है कि वीरसेन, जिनसेन आदि नामोंके धारक अन्य आचार्योंने इनकी रचना की हो । क्योंकि हमारे यहाँ एक नामके अनेक आचार्य होते रहे हैं। इन्द्रनन्दि नामके और भी कई आचार्य हो गये हैं। उनमेंसे एक तो वे हैं जिनका उल्लेख गोम्मटसार कर्मकाण्डकी ३९६ वी गाथामें किया गया है और जिनके पास सिद्धान्तग्रन्थोंका श्रवण करके कनकनान्द मुनिने ' सत्त्वस्थान' की रचना की है: वर इंदणंदिगुरुणो पासे सोऊण सयलसिद्धतं। सिरिकणयणदिमुणिणा सत्तहाणं समुद्दिहं ॥ ३९६ ॥ गोम्मटसारके कर्ताका समय विक्रमकी ११ वी शताब्दि है, अतएव ये इन्द्रनन्दि लगभग इसी समयके आचार्य हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003152
Book TitlePrayashchitta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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