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________________ (४) परन्तु अनेक पुस्तकालयोंमें यह स्वतंत्र रूपसे भी मिलता है । इसके कर्ता इन्द्रनन्दि योगीन्द्र हैं, जो संभवतः नन्दिसंघके आचार्य थे । यह नहीं मालूम हो सका कि उनके गुरुका क्या नाम था और वे निश्चय रूपसे कब हुए हैं । अय्यपार्य नामके एक विद्वान्ने शकसंवत् १२४१ (शाकाद्वे विधुवार्धिनेत्रहिमगौ सिद्धार्थसंवत्सरे ) में 'जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय' नामका संस्कृत ग्रन्थ बनाया है। उसकी प्रशस्तिमें लिखा है: वीराचार्यसुपूज्यपादजिनसेनाचार्यसंभाषितो, यः पूर्वं गुणभद्रसूरिवसुनन्दीन्द्रादिनन्यूर्जितः । यश्चाशाधरहस्तिमल्लकथितो यश्चैकसन्धिस्ततः, तेभ्यः स्वाहृत्सारमध्यरचितः स्याज्जैनपूजाक्रमः ॥ अर्थात् वीराचार्थ, पूज्यपाद, जिनसेन, गुणभद्र, वसुनन्दि, इन्द्रनन्दि, आशाधर, हस्तिमल्ल और एकसन्धिके ग्रन्थोंसे सार भाग लेकर मैंने यह पूजाक्रम रचा है। इससे मालूम होता है कि अय्यपार्यसे पहले उक्त आचार्योंके ऐसे ग्रन्थ वर्तमान थे जिनमें पूजाविषयक विधान थे अथवा जो केवल पूजाविषयक ही थे और उनमें इन्द्रनन्दिका भी कोई पूजाग्रन्थ था । और ऐसी अवस्थामें इन्द्रनन्दिका समय शक संवत् १२४१ अर्थात् विक्रमसंवत् १३७६ के पहले निश्चित होता है । यह छेदपिण्ड जिस इन्द्रनन्दिसंहिताका एक भाग है, उसमें भी एक अध्याय पूजाविषयक है और उसका नाम पूजाप्रक्रम है। इससे यही खयाल होता है कि अय्यपार्यने जिनका उल्लेख किया है वे यही इन्द्रनन्दि होंगे। परन्तु इसी इन्द्रनन्दिसंहिताके दायभाग प्रकरणकी अन्तिम गाथाओंसे इस विषयमें कुछ सन्दह. हो जाता है । वे गाथायें ये हैं: पुव्वं पुज्जविहाणे जिणसेणाइवारसंणगुरुजुत्तइ । पुज्जस्सयाय (?) गुणभद्दसूरिहिं जह तहुद्दिहा ॥ ६६ ॥ वसुणंदि-इंदणंदि य तह य मुणी एयसंधि गणिनाहं (हिं ) रचिया पुज्जविही या पुवक्कमदो विणिद्दिढा ॥६४॥ गोयम-समंतभद्द य अयलंक सु माहणंदिमुणिणाहिं । वसुणदि-इंदणंदिहिं रचिया सा संहिता पमाणाहु ॥६५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003152
Book TitlePrayashchitta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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