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श्रवणबेलगोल के स्मारक ज्ञात होता है। लेख नं० १०६ (२-१) (अनु० शक ६५०) से ज्ञात होता है कि राष्ट्रकूटनरेश इन्द्र की आज्ञा से चामुण्डराय के स्वामी जगदेकवीर राचमल्ल ने वज्वलदेव को परास्त किया था। लेख नं. ३८ (५६) (शक ८६६ ) से विदित होता है कि राष्ट्रकूटनरेश कृष्ण तृतीय के लिये गङ्गनरेश मारसिंह ने गुर्जर प्रदेश को जीता था व राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र ( चतुर्थ ) का राज्याभिषेक किया था। इन उल्लेखों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि गङ्गवश और राष्ट्रकूटव'श के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध था। इस वंश का सबसे प्राचीन लेख, जो इस संग्रह में पाया है, लेख नं० २४ ( ३५ ) (अनु० शक ७ २) है। इस लेख में ध्रुव के पुत्र व गोविन्द ( तृतीय ) के ज्येष्ठ भ्राता रणावलोक कम्बय्य का उल्लेख है। एक लेख ( ए० क० ४, हेग्गडदेवकोटे ६३) से ज्ञात होता है कि जब गङ्गगज शिवमार द्वितीय को ध्रुव ने कैद कर लिया था तब राजकुमार कम्ब गङ्गप्रदेश के शासक नियुक्त किये गये थे व ए० क. ६, नेलमङ्गल ६१ से ज्ञात होता है कि कम्ब शक सं० ७२४ ( ई. सन् ८०२) में गङ्गप्रदेश का शासन कर रहे थे। हाल ही में चामराज नगर से कुछ ताम्रपत्र मिले हैं ( मै० प्रा० रि १६२० पृ० ३१) जिनसे ज्ञात होता है कि जिस समय कम्ब का शिविर तलवननगर ( तलकाड ) में था तब उन्होंने अपने पुत्र शङ्करगण्ण की प्रार्थना से शक सं० ७२६ ( सन् ८०७ ई०) में एक ग्राम का दान जैनाचार्य वर्धमान को दिया था। अन्य प्रमाणों से ज्ञात
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