________________
राष्ट्रकूटवंश जिन्होंने राजादित्य चोल के ऊपर सन् ६४६ में बड़ी भारी विजय प्राप्त की। इस समय के युद्धों का मूल कारण धार्मिक था। राष्ट्रकूटनरेश जैनधर्मपोषक और चोल नरेश शैव धर्मपोषक थे। इनके समय में सोमदेव, पुष्पदन्त, इन्द्रनन्दि आदि अनेक जैनाचार्य हुए हैं। कृष्णराज के उत्तराधिकारी खोटिगदेव और उनके पीछे कर्कराज द्वितोय हुए। इनके समय में चालुक्यवंश पुनः जागृत हो उठा। इस वंश के तैल व तैलप ने कर्कराज को सन् ६७३ में बुरी तरह परास्त कर दिया जिससे राष्ट्रकूट वंश का प्रताप सदैव के लिये अस्त हो गया। जैसा कि आगे विदित होगा, लेख नं० ५७ (शक सं०६०४) में कृष्णाराज तृतीय के पौत्र एक इन्द्रराज (चतुर्थ) का भी उल्लेख है व लेख नं० ३८ में कहा गया है कि गङ्गनरेश मारसिंह ने इन्द्र का अभिषेक किया था। सम्भवत: राष्ट्रकूटवंश के हितैषी गङ्गनरंश ने राष्ट्रकूट राज्य को रक्षित रखने के लिये यह प्रयत्न किया पर इतिहास में इमका कोई फल देखने में नहीं आता। दक्षिण का राष्ट्रकूटवंश इतिहास के सफे से उड़ गया।
अब इस संग्रह के लेखों में इस वंश के जो उल्लेख हैं उनका परिचय कराया जाता है। ___इस वंश के वग व अमोघवर्ष तृतीय ने कोणेय गंग के साथ गङ्गवन व रकसमणि के विरुद्ध युद्ध किया था, ऐसा लेख नै०६० ( १३८) ( अनु शक ८६२ ) के उल्लेख से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org