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श्रवणबेलगोल के स्मारक
किया । इनके समय में राष्ट्रकूट राज्य का विस्तार और भी बढ़ गया । आगामी नरेश गोविन्द तृतीय के समय में राष्ट्रकूट राज्य विन्ध्य और मालवा से लगाकर कावी तक फैल गया । इन्होंने अपने भाई इन्द्रराज को लाट ( गुजरात ) का सूबेदार बनाया । गोविन्द तृतीय के पश्चात् अमोघवर्ष राजा हुए जिन्होंने लगभग सन् ८१५ से ८७७ ईस्वी तक राज्य किया । इन्होंने अपनी राजधानी नासिक को छोड़ मान्यखेट में स्थापित की। इनके समय में जैन धर्म की खूब उन्नति हुई। अनेक जैन कवि –— जैसे जिनसेन, गुणभद्र, महावीर आदि - इनके समय में हुए । गुणभद्राचार्य ने उत्तर पुराण में कहा है कि राजा अमोघवर्ष जिनसेनाचार्य को प्रणाम करके अपने को धन्य समझता था । अमोघवर्ष स्वयं भी कवि थे । इनकी बनाई हुई 'रत्नमालिका' नामक पुस्तक से ज्ञात होता है कि वे अन्त समय में राज्य को त्यागकर मुनि हो गये थे । "विवेकात्यक्तराज्येन राज्ञेयं रत्नमालिका । रचितामोघवर्षेण सुधियां सदलंकृतिः ॥”
अमोघवर्ष के पश्चात् कृष्णराज द्वितीय हुए जिनकी अकालवर्ष, शु· तुङ्ग, श्रो पृथ्वीवल्लभ, वल्लभराज, महाराजाधिराज, परमेश्वर परमभट्टारक उपाधियाँ पाई जाती हैं। इनके पश्चात् इन्द्र (तृतीय) हुए जिन्होंने कन्नौज पर चढ़ाई कर वहाँ के राजा महीपाल को कुछ समय के लिये सिंहासनच्युत कर दिया । इनके उत्तराधिकारियों में कृष्णराज तृतीय सबसे प्रतापी हुए
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