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राष्ट्रकूटवंश सिंग के एक नाती नागवर्म के सल्लेखना मरण का उल्लेख है। सूडि व कूडलूर के दान-पत्रों (ए० इ० ३, १५८, म० प्रा० रि० १६२५, पृ० २५) में गङ्गनरेश एरेयप्प और उनके पुत्र नरसिंग का उल्लेख है। सम्भव है कि उपर्युक्त लेख के एरंगत और नरसिंग ये ही हों।
कुछ लेखों में बिना किसी राजा के नाम के गंगवंश मात्र का उल्लेख है [ लेख नं० १६३ ( ३७ ); १५१ ( ४११); २४६ (१६४); ४६८ (३७८)] । लेख नं० ५५ (६६) में उल्लेख है कि जो जैन धर्म ह्रास अवस्था को प्राप्त हो गया था उसे गोपनन्दि ने पुनः गङ्गकाल के समान समृद्धि और ख्याति पर पहुँचाया। लेख नं. ५४ (६७ ) में उल्लेख है कि श्रोविजय का गङ्गनरेशों ने बहुत सम्मान किया था। लेख नं० १३७ ( ३४५ ) में उल्लेख है कि हुल्ल ने जिस केल्लंगेरे में अनेक बस्तियाँ निर्माण कराई थी उसकी नींव गङ्गनरेशों ने ही डाली थी। लेख नं० ४८६ में गङ्ग वाडि का उल्लेख हैं।
राष्टकूटवंश-राष्ट्रकूटवंश का दक्षिण भारत में इतिहास ईस्वी सन की आठवीं शताब्दि के मध्यभाग से प्रारम्भ होता है। इस समय राष्ट्रकूटवश के दन्तिदुर्ग नामक एक राजा ने चालुक्यनरेश कीर्तिवर्मा द्वितीय को परास्त कर राष्ट्रकूट साम्राज्य की नींव डाली। उसके उत्तराधिकारी कृष्ण प्रथम ने चालुक्य राज्य के प्रायः सारे प्रदेश अपने आधीन कर लिये । कृष्ण के पश्चात् क्रमशः गोविन्द ( द्वितीय ) और ध्रुव ने राज्य
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