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________________ श्रवणबेलगोल के स्मारक ही किया गया है नं० १३७ (३४५)। लेख नं० ६७ (१२१) में उल्लेख है कि चामुण्डराय के पुत्र, व अजितसेन के शिष्य जिनदेवन ने बेल्गोल में एक जैन मन्दिर निर्माण कराया था। ___ इनके अतिरिक्त अन्य कई लेखों में गङ्गवंश के ऐसे नरेशों का उल्लेख मात्र आया है, जिनका अभी तक अन्य कहीं कोई विशेष परिचय नहीं पाया गया। लेख नं. २५६ (४१५) में जिस शिवमारन बसदि का उल्लेख है वह सम्भवतः गङ्गवंश के शिवमार नरेश. ( सम्भवतः शिवमार द्वि० श्री-पुरुष के पुत्र) ने निर्माण कराई थी। लेख नं० ६० ( १३८) में किसी गङ्गवज्र अपर नाम रकसमणि का उल्लेख है जिनके बोयिग नाम के एक वीर योद्धा ने वग और कोणेयगङ्ग के विरुद्ध युद्ध करते हुए अपने प्राण विमर्जित किये। वहग राष्ट्रकूटनरेश अमोघवर्ष तृतीय का उपनाम भी था। गङ्गवन मारसिंग नरेश की उपाधि भी थो (नं. ३ . (५८)। लेख नं० ६१ (१३६) में लोकविद्याधर अपर नाम उदयविद्याधर का उल्लेख है। निश्चयतः नहीं कहा जा सकता कि यह भी कोई गङ्गवशी नरेश का नाम है या नहीं; किन्तु कुछ गङ्गनरेशों की विद्याधर उपाधि थो। उदाहरणार्थ, रक्कसगङ्ग के दत्तक पुत्र का नाम राजविद्याधर था ( ए० क०८, नगर ३५) व मारसिंग की उपाधि गङ्गविद्याधर थी ३८ (५६)। अतएव सम्भव है कि लोकविद्याधर व उदयविद्याधर भी कोई गङ्गनरेश रहा हो। नं० २३५ ( १५० ) में गणराज्य व एरेगङ्ग के महामन्त्री नर Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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