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________________ राष्ट्रकूट वंश हुआ है कि ध्रुव नरेश ने अपना उत्तराधिकारी अपने कनिष्ठ पुत्र गोविन्द (तृतीय) को बनाया था व कम्ब को गङ्गप्रदेश दिया था इस हेतु कम्ब ने गोविन्द के विरुद्ध तैयारी की पर अन्त में उन्हें गोविन्द का प्राधिपत्य स्वीकार करना पड़ा । लेख नं० ५७ (१३३ ) में इन्द्र चर्थ की किसी गेंद के खेल में चतुराई आदि का वर्णन है व उल्लेख है कि उन्होंने शक सं० ६०४ में श्रवणवेल्गुल में सल्लेखना मरण किया । लेख में यह भी कहा गया है कि इन्द्र कृष्ण ( तृतीय ) के पौत्र, गङ्गगंगेय (बूतुग) के कन्यापुत्र व राजचू मणि के दामाद थे। यह विदित नहीं हुआ कि ये राजचूड़ामणि कौन थे । इन्द्र की रट्टकन्दर्प, राजमार्तण्ड, चलङ्कराव, चलदग्गलि, कीर्तिनारायण, एलेवबेडेंग, गेडेगलाभरण, कलिगलोलगण्ड और बीरर वीर ये उपाधियाँ थीं। जैसा ऊपर कहा जा चुका है, गङ्गनरेश मारसिंह ने इन्द्र का राज्याभिषेक किया था । लेख नं० ५८ (१३४ ) 'मावणगन्धहस्ति' उपाधिधारी एक वीर योधा पिट्ट की मृत्यु का स्मारक है । लेख में इस वीर के पराक्रमवर्णन के पश्चात् कहा गया है कि उसे राजचूड़ामणि मार्गे डेमल्ल ने अपना सेनापति बनाया था । लेख की लिपि और राजचूड़ामणि व चित्रभानु संवत्सर के उल्लेख से अनुमान होता है कि यह भी इन्द्र चतुर्थ के समय का है । प्रसङ्गवश लेख नं० ५४ (६) में साहसतुङ्ग और कृष्णराज का उल्लेख है । अकलङ्कदेव ने अपनी विद्वत्ता का वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only ゆの - www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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