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श्रवणबेल्गोल के स्मारक ३६७; उदयन्दिरम् का दानपत्र (सा० ई० ई० २, ३८७); कूडल का दानपत्र ( मै० प्रा० रि० १९२१ पृ. २६); ए० क० ७, शिमोग ४; ए० क० ८ नगर ३५ व ३६ इत्यादि । इसके अतिरिक्त गोम्मटसार वृत्ति के कर्ता अभयचन्द्र विद्य• चक्रवर्ती ने भी अपने ग्रन्थ की उत्थानिका में इस बात का उल्लेख किया है। इन अनेक उल्लखों से यद्यपि यह स्पष्ट नहीं ज्ञात होता कि जैनाचार्य ने गणराज्य की जड़ जमाने में किस प्रकार सहायता की थो तथापि यह बात पूर्णत: सिद्ध होती है कि गङ्गवंश की जड़ जमानेवाले जैनाचार्य सिंहनन्दि ही थे। कहा जाता है कि प्राचार्य पूज्यपाद देवनन्दि इसी वंश के सातवें नरेश दुर्विनीत के राजगुरु थे। गङ्गवंश के अन्य अनेक प्रकाशित लेख जैनाचार्यों से सम्बन्ध रखते हैं।
लेख नं० ३८ (५६ ) में गङ्गनरेश मारसिंह के प्रताप का अच्छा वर्णन है। अनेक भारी भारी युद्धों में विजय पाकर अनेक दुर्ग किले आदि जीतकर व अनेक जैन मन्दिर और स्तम्भ निर्माण कराकर अन्त में अजितसेन भट्टारक के समीप सल्लेखना विधि से बकापुर में उन्होंने शरीर त्याग किया। उन्होंने राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र ( चतुर्थ ) का अभिषेक किया था। यद्यपि इस लेख में उनके स्वर्गवास का समय नहीं दिया गया पर एक दूसरे लेख ( ए० क. १०, मूल्बागल ८४ ) में कहा गया है कि उन्होंने शक सं० ८६६ में शरीर त्याग किया था। गङ्गनरेश मारसिंह और राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज तृतीय इन
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