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गड़वंश के अन्य अनेक लेखों का पता लगाया जो उनकी जाँच में ठीक उतरे। इनके बल से उन्होंने गङ्गवंश की ऐतिहासिकता सिद्ध की है। ____ इस वंश का राज्य मैसूर प्रान्त में लगभग ईसा की चौथी शताब्दि से ग्यारहवीं शताब्दि तक रहा। आधुनिक मैसूर का अधिकांश भाग उनके राज्य के अन्तर्गत था जो गङ्गवाडि ६६००० कहलाता था। मैसूर में जो आजकल गङ्गडिकार (गङ्गवाडिकार ) नामक किसानों की भारी जनसख्या है वे गङ्गनरेशों की प्रजा के ही वंशज हैं। गङ्गराजाओं की सबसे पहली राजधानी 'कुवलाल' व 'कोलार' थी जो पूर्वी मैसूर में पालार नदी के तट पर है। पीछे राजधानी कावेरी के तट पर 'तलकाड' को हटा ली गई। आठवीं शताब्दि में श्रीपुरुष नामक गङ्गनरेश अपनी राजधानी सुविधा के लिये बङ्गलोर के समीप मण्णे व मान्यपुर में भी रखते थे। इसी समय में गङ्गराज्य अपनी उत्कृष्ट अवस्था पर पहुँच गया था। तलकाड ईसा की ११ हवीं शताब्दि के प्रारम्भ में चोल नरेशों के अधिकार में आ गया और तभी से गणराज्य की इतिश्री हुई। आदि से ही गङ्गराज्य का जैनधर्म से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा । लेख नं० ५४ (६७ ) के उल्लंख से ज्ञात होता है कि गणराज्य की नींव डालने में जैनाचार्य सिंहनन्दि ने भारीसहायता की थी। सिंहनन्द्याचार्य की इस सहायता का उल्लेख गङ्गवंश के अन्य कई लेखों में भी पाया जाता है, उदाहरणार्थ लेख नं०
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