________________
श्रवणबेलगोल के स्मारक
शताब्दि के ग्रन्थों से होता है। इसकी प्रामाणिकता सर्वतः पूर्ण नहीं कही जा सकती किन्तु बहुत कुछ सोच-विचार करने पर मेरा झुकाव इस कथन की मुख्य बातों को स्वीकार करने की ओर है। यह तो निश्चित ही है कि जब ईस्वी पूर्व ३२२ में व इसके लगभग चन्द्रगुप्त सिंहासनारूढ़ हुए थे तब वे तरुण अवस्था में ही थे । प्रतएव जब चौबीस वर्ष के पश्चात् उनके राज्य का अन्त हुआ तब उनकी अवस्था पचास वर्ष से नीचे ही होगी । अत: उनका राजपाट त्याग देना उनके इतनी कम अवस्था में लुप्त हो जाने का उपयुक्त कारण प्रतीत होता है । राजाओं के इस प्रकार विरक्त हो जाने के अन्य भी उदाहरण हैं और बारह वर्ष का दुर्भिक्ष भी अविश्वसनीय नहीं है 1 संक्षेपतः अन्य कोई वृत्तान्त उपलब्ध न होने के कारण इस क्षेत्र में जैन कथन ही सर्वोपरि प्रमाण हैं ।"
अब शिलालेखों में जो राजव ंशों का परिचय पाया जाता हैं उसका सिलसिलेवार परिचय दिया जाता है ।
९ गङ्गवंश - इस राजवंश का अब तक का ज्ञात इतिदास लेखों, विशेषतः ताम्रपत्रों पर से सङ्कलित किया गया है। इस वंश से सम्बन्ध रखनेवाले अनेक ताम्रपत्रों की डा० फ्लोट ने पूर्णरूप से जांचकर यह मत प्रकाशित किया था कि वे सब ताम्रपत्र जाली हैं और गङ्गवंश की ऐतिहासिक सत्ता के लिये कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है । इसके पश्चात् मैसूर पुरातत्व विभाग के डायरेकर रावबहादुर नरसिंहाचार ने इस वंश
७०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org