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श्रवणबेलगोल के स्मारक गैातम, लोहार्य, जम्बू विष्णुदेव, अपराजित, गोवर्द्धन, भद्रबाहु, विशाख, प्रोष्ठिल, कृतिकार्य, जय, सिद्धार्थ, धृतिषेण, बुद्धिलादि गुरुपरम्परा में होनेवाले भद्रबाहु स्वामी के त्रैकाल्यदर्शी निमित्तज्ञान द्वारा उज्जयिनी में यह कथन किये जाने पर कि वहाँ द्वादश वर्ष का वैषम्य ( दुर्भिक्ष ) पड़नेवाला है, सारे संघ ने उत्तरापथ से दक्षिणापथ को प्रस्थान किया और क्रम से वह एक बहुत समृद्धियुक्त जनपद में पहुँचा। यहाँ प्राचार्य प्रभाचन्द्र ने व्याघ्रादि व दरीगुफादि-संकुल सुन्दर कटवप्र नामक शिखर पर अपनी प्रायु अल्प ही शेष जान समाधितप करने की प्राज्ञा लेकर, समस्त संघ को प्रागे भेजकर व केवल एक शिष्य को साथ रखकर देह की समाधि-आराधना की ।"
ऊपर इस विषय के जितने उल्लख दिये गये हैं उनमें दो बाते सर्वसम्मत हैं-प्रथम यह कि भद्रबाहु ने बारह वर्ष के दुर्भिक्ष की भविष्यवाणी की और दूसरे यह कि उप वाणी को सुनकर जैनसंघ दक्षिणापथ को गया। हरिषेण के अनुसार भद्रबाहु दक्षिणापथ को नहीं गये। उन्होंने उज्जयिनी के समीप ही समाधिमरण किया और चन्द्रगुप्ति मुनि अपर नाम विशाखाचार्य संघ को लेकर दक्षिण को गये। भद्रबाहुचरित तथा राजावलीकथा के अनुसार भद्रबाहु स्वामी ने ही श्रवणबेलगोल तक संघ के नायक का काम किया तथा श्रवणबेलगोल की छोटी पहाड़ो पर वे अपने शिष्य चन्द्रगुप्त-सहित ठहर गये। मुनिवंशाभ्युदय तथा उपयुल्लिखित सेरिङ्गपट्टम के दो लेख,
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