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लेखों की ऐतिहासिक उपयोगिता वह शिशु बारह बार चिल्लाया पर किसी ने उसकी आवाज नहीं सुनी। इससे स्वामीजी को विदित हुआ कि दुर्भिक्ष प्रारम्भ हो गया है। राजा के मन्त्रियों ने दुभिक्ष को रोकने के लिये कई यज्ञ किये। पर चन्द्रगुप्त ने उन सबके पापों के प्रायश्चित्त-स्वरूप अपने पुत्र सिंहसेन को राज्य दे भद्रबाहु से जिन दीक्षा ले ली और उन्हीं के साथ हो गये। भद्रबाहु अपने बारह हजार शिष्यों-सहित दक्षिण को चल पड़े। एक पहाड़ी पर पहुँचने पर उन्हें विदित हुआ कि उनकी आयु अब बहुत थोड़ी शेष है; इसलिये उन्होंने विशाखाचार्य को संघ का नायक बनाकर उन्हें चौल और पांड्य देश को भेज दिया। केवल चन्द्रगुप्त को उन्होंने अपने साथ रहने की अनुमति दी । उनके समाधिमरण के पश्चात् चन्द्रगुप्त उनके चरणचिह्नों की पूजा करते रहे। कुछ समय पश्चात् सिंहसेन नरेश के पुत्र भास्कर नरेश भद्रबाहु के समाधिस्थान की तथा अपने पितामह की बन्दना के हेतु वहाँ आये और कुछ समय ठहरकर उन्होंने वहाँ जिनमन्दिर निर्माण कराये, तथा चन्द्रगिरि के समीप बेल्गोल नामक नगर बसाया। चन्द्रगुप्त ने उसी गिरि पर समाधिमरण किया।
इस सम्बन्ध में सबसे प्राचीन प्रमाण चन्द्रगिरि पर प्राश्वनाथ बस्ति के पास का शिलालेख (नं० १) है। यह लेख श्रवणबेलगोल के समस्त लेखों में प्राचीनतम सिद्ध होता है। इस लेख में कथन है कि "महावीर स्वामी के पश्चात् परमर्षि
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