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लेखों की ऐतिहासिक उपयोगिता ५७ भद्रबाहु को अपने संरक्षण में ले लिया और उन्हें सब विद्याएँ सिखाई। यथासमय भद्रबाहु ने गोवर्धन स्वामी से जिन दीक्षा धारण की। एक समय विहार करते हुए भद्रबाहु स्वामी उज्जैनी नगरी में पहुँचे और सिप्रा नदी के तीर एक उपवन में ठहरे। इस समय उज्जैनी में जैनधर्मावलम्बो राजा चन्द्रगुप्त अपनी रानी सुप्रभा-सहित राज्य करते थे । जब भद्रबाहु स्वामी आहार के निमित्त नगरी में गये तब एक गृह में झूले में झूलते हुए शिशु ने उन्हें चिल्लाकर मना किया और वहाँ से चले जाने को कहा। इस निमित्त से स्वामी को ज्ञात हो गया कि वहाँ एक बारह वर्ष का भीषण दुर्भिक्ष पड़नेवाला है। इस पर उन्होंने समस्त संघ को बुलाकर सब हाल कहा और कहा कि “अब तुम लोगों को दक्षिण दंश को चले जाना चाहिए। मैं स्वयं यहीं ठहरूँगा क्योंकि मेरी प्रायु क्षीण हो चुकी है।* ____जब चन्द्रगुप्त महाराज ने यह सुना तब उन्होंने विरक्त होकर भद्रबाहु स्वामी से जिन दीक्षा ले ली। फिर चन्द्रगुप्त मुनि, जो दशपूर्वियों में प्रथम थे, विशाखाचार्य के नाम से जैन संघ के नायक हुए। भद्रबाहु की प्राज्ञा से वे संघ को दक्षिण के पुन्नाट देश को ले गये । इसी प्रकार रामिल. स्थूलवृद्ध,
* अहमत्र व तिष्ठामि क्षीणमायुर्ममाधुना ।
| पुन्नाट बड़ा पुराना राज्य रहा है। कन्नड साहित्य में यह पुन्नाड के नाम से प्रसिद्ध है। 'टालेमी' ने इसका उल्लेख पनिट'
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