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________________ लेखों की ऐतिहासिक उपयोगिता उन्होंने अपने समस्त शिष्यों-सहित दक्षिण की ओर प्रस्थान किया। भारतसम्राट चन्द्रगुप्त ने भी इस दुर्भिक्ष का समाचार पा, संसार से विरक्त हो, राज्यपाट छोड़ भद्रबाहु स्वामी से दीक्षा ली और उन्हीं के साथ गमन किया । जब यह मुनिसंघ श्रवण बेल्गोल स्थान पर पहुँचा तब भद्रबाहु स्वामी ने अपनी प्रायु बहुत थोड़ी शेष जान, संघ को आगे बढ़ने की प्राज्ञा दी और पाप चन्द्रगुप्त शिष्य-सहित छोटी पहाड़ी पर रहे। चन्द्रगुप्त मुनि ने अन्त समय तक उनकी खूब सेवा की और उनका शरीरान्त हो जाने पर उनके चरणचिह्न की पूजा में अपना शेष जीवन व्यतीत कर अन्त में सल्लेखना विधि से शरीरत्याग किया। अब देखना चाहिए कि श्रवण बेल्गोल के स्थानीय इतिहास से, शिलालेखां से व साहित्य से इस बात का कहाँ तक समर्थन होता है। कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त के वहाँ रहने से ही उस पहाड़ी का नाम चन्द्रगिरि पड़ा। इस पहाड़ी पर की प्राचीनतम बस्ति चन्द्रगुप्त द्वारा ही पहले-पहल निर्माण कराये जाने के कारण चन्द्रगुप्त बस्ति कहलाई। इस पहाड़ी पर की भद्रबाहु गुफा में चन्द्रगुप्त के भी चरण-चिह्न हैं। कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त ने इसी गुफा में समाधिमरण किया था। सेरिङ्गपट्टम के दो शिलालेखों ( ए० क० ३, सेरिङ्गपट्टम १४७, १४८) में उल्लेख है कि कल्बप्पु शिखर ( चन्द्रगिरि ) पर महामुनि भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त के चरण-चिह्न हैं। ये शिला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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