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श्रवणबेल्गोल के स्मारक साणेहल्लि-यह ग्राम श्रवणबेल्गुल से तीन मील पर है। यहाँ एक ध्वंस जैन मन्दिर है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, लेख नं० ४८६ (४०० ) के अनुसार इसे गङ्गराज की भावज जकिमव्वे ने निर्माण कराया था।
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लेखों की ऐतिहासिक उपयोगिता विशेष राजवंशों से सम्बन्ध रखनेवाले लेखों का विवेचन करने से पूर्व यहाँ एक ऐसी घटना पर कुछ विचार करना प्रावश्यक है जिसका राजकीय व जैन-धार्मिक इतिहास से अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है। जैनसंघ के नायक भद्रबाहु स्वामी के साथ भारतसम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की दक्षिण यात्रा का प्रसङ्ग जैसा जैन इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण है वैसा ही वह भारत के राजकीय इतिहास में अनुपेक्षणीय है। लगातार कई वर्षों से इस विषय पर इतिहासवेत्ताओं में मतभेद चला भाता है। यद्यपि मतभेद का अभी तक अन्त नहीं हुअा, पर अधिकांश विद्वानों का झुकाव एक ओर होने से इस विषय का प्रायः निर्णय ही समझना चाहिए। संक्षेप में, जैनसाहित्य में यह प्रसङ्ग इस प्रकार पाया जाता है-अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी ने निमित्त-ज्ञान से जाना कि उत्तर भारत में एक बारह वर्ष का भीषण दुर्भिक्ष पड़नेवाला है। ऐसी विपत्ति के समय में वहाँ मुनिवृत्ति का पालन होना कठिन जान
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