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श्रवणबेलगोल के आसपास के ग्राम
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हलेबेल्गोल - यह ग्राम श्रवणबेलगोल से चार मील उत्तर की ओर है । यहाँ का होयसल शिल्पकारी का बना हुआ जैनमन्दिर ध्वंस प्रवस्था में है। गर्भगृह में अढ़ाई फुट की खड्गासन मूर्त्ति है । सुखनासि में लगभग पाँच फुट ऊँची सप्तफणी पार्श्वनाथ की खण्डित मूर्त्ति रक्खी है। नवरङ्ग
में अच्छी चित्रकारी है । बोच की छत पर देवियों सहित रथारूढ़ अष्टदिक्पालों के चित्र हैं जिनके बीच में पञ्चफणी धरणेन्द्र का चित्र है । धरणेन्द्र के बाँयें हाथ में धनुष और दाहिने में सम्भवतः शङ्ख है । नवरङ्ग में दो चवरवादी और एक तीर्थकर मूर्त्ति खण्डित रक्खी हुई हैं। नवरङ्ग के द्वार पर अच्छी कारीगरी दिखलाई गई है । इस मन्दिर के सन् १०८४ के लेख ( नं० ४८२ ) से विदित होता है कि विष्णुवर्द्धन के पिता होयसल एरेयङ्ग ने बेल्गोल के मन्दिरों के जीर्णोद्वार के लिये जैनगुरु गोपनन्दि को राचनद्दल्ल ग्राम का दान दिया । इस लेख ब लेख नं ० ५५ (६८ ) में गोपनन्दि की खूब प्रशंसा पाई जाती है। यह बस्ति संभवत: लगभग शक सं० १०१६ की बनी हुई है।
इस ग्राम में एक शैत्र और एक वैष्णव मन्दिर भी है। ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में यहाँ अधिक मन्दिर रहे हैं क्योंकि यहाँ के एक तालाब की नहर में प्रायः सारा मसाला टूटे हुए मन्दिरों का लगा हुआ है । ग्राम के मध्य में एक तालाब के पास एक खण्डित जिन प्रतिमा भी है ।
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