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श्रवणबेलगोल के आसपास के ग्राम ५१ ( ३८० ) से ज्ञात होता है कि इस बस्ति को 'वसुधै कबान्धव रेचिमय्य' सेनापति ने बनवाकर सागरनन्दि सिद्धान्तदेव के अधिकार में दे दी थी। एक लेख ( ए० क० अर्सीकेरे ७७ सन् १२२० ) में उल्लेख है कि उक्त सेनापति कलचुरिनरेश के मंत्री थे, पश्चात् उन्होंने होरसल नरेश बल्लाल (द्वितीय) ( सन् ११७३-१२२० ) की शरण लो। इससे शान्तिनाथ बस्ति के निर्माण का समय लगभग शक सं० ११२० सिद्ध होता है। नवरङ्ग के एक स्तम्भ पर के लेख नं० ४७० ( ३७६) से विदित होता है कि इस बस्ति का जीर्णोद्धार पालेद पदुमन्न ने शक सं० १५५३ में कराया था।
ग्राम के पूर्व में अरेगल बस्ति नाम का एक दूसरा मंदिर है। यह शान्तिनाथ बस्ति से भी पुराना है। इसमें पार्श्वनाथ भग
वान् की सप्तफणी, प्रभावली संयुक्त पाँच अरेगल बस्ति
फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति है। सुखनासि में धरणेन्द्र और पद्मावती के सुन्दर चित्र हैं। मन्दिर में सफाई अच्छी रहती है । एक चट्टान ( अरेगल ) के ऊपर निर्मित होने से ही यह मन्दिर अरेगल बस्ति कहलाता है। पार्श्वनाथ की पीठिका पर के लेख नं० ४७४ ( ३८३ ) से विदित होता है कि वह मूत्ति शक सं० १८१२ में बेल्गुल के भुजबलैय्य ने प्रतिष्ठित कराई है। इसका कारण यह था कि प्राचीन मूत्ति बहुत खण्डित हो गई थी। यह प्राचीन मूर्ति अब पास ही के तालाब में पड़ी हुई है और उसका छत्र बस्ति के द्वारे के पास
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