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________________ ५० श्रवणबेलगोल के हमारेक नं० ४८० ( ३-८० ) से इस कुण्ड का समय शक सं० १५८५ के लगभग प्रतीत होता है । श्रवणबेलगोल के आसपास के ग्राम शान्तिनाथ बस्ति जिननाथ पुर - यह श्रवणबेलगोल से एक मील उत्तर की ओर है । लेख नं० ४७८ (३८८ ) के अनुसार इसे होय्सल - नरेश विष्णुवर्द्धन के सेनापति गङ्गराज ने शक सं० १०४० के लगभग बसाया था । यहाँ की शान्तिनाथ बस्ति होयसल शिल्पकारी का बहुत सुन्दर नमूना है। इसमें एक गर्भगृह, सुखनासि और नवरङ्ग हैं । शान्तिनाथ की साढ़े पाँच फुट ऊँची मूर्त्ति बड़ी भव्य और दर्शनीय है । वह प्रभावली और दोनों ओर चवरवाहियों से सुसज्जित है। नवरङ्ग के चार स्तम्भ अच्छी मूँगे की कारीगरी के बने हैं हुए आमनेइसके नवछत भी बड़े सुन्दर । हैं । सामने दो सुन्दर आले बने हुए हैं जो अब खाली हैं । बाहिरी दीवालों पर अनेक चित्रपट हैं । कई चित्र अधूरे ही रह गये हैं । इनमें तीर्थकर, यक्ष, यक्षिणी, ब्रह्म, सरस्वती, मन्मथ, मोहिनी, नृत्यकारिणी, गायक, बादित्रवादी आदि के चित्र हैं । नारी- चित्रों की संख्या चालीस हैं । यह बस्ति मैसूर राज्य भर के जैन मंदिरों में सबसे अधिक आभूषित है । शान्तिनाथ की पीठिका के लेख नं० ४७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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