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श्रवणबेलगोल नगर . प्रथम (सन् १७१३-१७३१) के समय में शिखर, सभामण्डप
आदि बनवाकर पूर्ण कराया। सम्भवतः यही बड़ा पुराना सरोवर रहा है जिस पर से इस नगर का नाम बेल्गुल (धवल सरोवर ) पड़ा। उक्त पुरुषों ने सम्भवतः इसका जीर्णोद्धार कराया होगा। यह भी हो सकता है कि इस स्थान को नाम देनेवाला धवल सरोवर कोई अन्य ही रहा हो।
जलिकट्टे-यह भण्डारि बस्ति के दक्षिण में एक छोटा सा सरोवर है। इसके पास की दो चट्टानों पर जैन प्रतिमाओं के नीचे के दो लेखे नं० ४४६ (३६७) और ४४७ ( ३६८) से ज्ञात होता है कि बोपदेव की माता, गङ्गराज के ज्येष्ठ भ्राता की भार्या, शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव की शिष्या जक्किमव्वे ने ये जिनमुत्तियाँ और सरोवर निर्माण कराये । लेख नं० ४३ (११७) व अन्य लेखां से सिद्ध है कि गङ्गराज होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन के सेनापति थे और शक सं० १०४५ में जीवित थे। इस लेख में जक्किमव्वे की भी प्रशस्ति है। साणेहल्लि के एक लेख नं. ४८६ (४०० ) से ज्ञात होता है कि इसी धर्मपरायणा साध्वी महिला ने वहाँ भी एक बस्ति निर्माण कराई थी।
१० चेन्नगण का कुण्ड-नगर से दक्षिण की ओर कुछ दूरी पर यह कुण्ड है। इसका निर्माता वही चेन्नण्ण बस्ति का निर्माता चेन्नण्ण है। चेनण्ण की कृतियों का उल्लेख लेख नं० १२३ तथा ४४८-४५३ व ४६३-४६५ में है।
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