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श्रवणबेलगोल नगर उक्त महावीर स्वामी की पीठिका पर के लेख से सिद्ध होता है कि उनकी प्रतिष्ठा पण्डितदेव की शिष्या वसतायि ने कराई थी। इसका भी उक्त समय ही अनुमान होता है। इसी मंदिर के एक लेख [नं० १३४ (३४२)] से विदित होता है कि इसकी मरम्मत सम्भवतः शक सं० १३३४ में गेरसोप्पे के हिरिय अय्य के शिष्य गुम्मटण्ण ने कराई थी।
७ जैनमठ-यह यहाँ के गुरु का निवास स्थान है। इमारत बहुत सुन्दर है, बीच में खुला हुआ आँगन है। हाल ही में दूसरी मन्जिल भी बन गई है। मण्डप के खम्भे अच्छी कारीगरी के बने हुए हैं। उन पर खूब चित्रकारी है। यहाँ के तीन गर्भगृहों में अनेक पाषाण और धातु की मूत्तियाँ हैं । इनमें की अनेक मृत्तियाँ बहुत अर्वाचोन हैं। इन पर संस्कृत व तामिल भाषा में ग्रंथ अक्षरों के लेख हैं जिनसे ज्ञात होता है कि वे अधिकांश मद्रास प्रान्तीय धर्मिष्ठ भाइयों ने प्रदान की हैं। नवदेवता बिम्ब में पञ्चपरमेष्ठो के अतिरिक्त जिनधर्म, जिनागम, चैत्य और चैत्यालय भी चित्रित हैं। मठ की दीवालों पर तीर्थकरों व जैन राजाओं के जीवन की घटनाओं के अनेक रङ्गीन चित्र हैं। इनमें मैसूर-नरेश कृष्णराज ओडेयर तृतीय के 'दसर दरवार' का भी चित्र है। पार्श्वनाथ के समवसरण व भरत चक्रवत्ति के जीवन के चित्र भी दर्शनीय हैं। चार चित्र नागकुमार की जीवन-घटनाओं के हैं। एक वन के दृश्य में षडलेश्याओं के पुरुषों के चरित्र बड़ी उत्तम रीति
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