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________________ श्रवणबेलगोल के स्मारक रङ्गा और अश्मकुट्टिम ( पाषाणभूमि ) व अपने गुरु नयकीर्ति देव की निषद्या निर्माण कराये जाने का भी उल्लेख है। लेख नं० १२२ ( ३२६) के अनुसार उन्होंने नयकीर्ति के नाम से ही नागसमुद्र नामक सरोवर भी बनवाया। यह सरोवर अब 'जिगणेक?' कहलाता है। पर लेख नं० १०८ (२५८) में कहा गया है कि पण्डित यति के तप के प्रभाव से ही नगर जिनालय (नगर जिनास्पद ) की सृष्टि हुई। ६ मङ्गायि बस्ति -इसमें एक गर्भगृह, सुखनासि और नवरङ्ग है। इसमें एक साढ़े चार फुट ऊँची शान्तिनाथ की मूत्ति विराजमान है। सुखनासि के द्वार पर प्राजू-बाजू पाँच फुट ऊँची चवरवाहियों की मूर्तियाँ हैं। नवरङ्ग में वर्द्धमान स्वामी की मूर्ति है जिस पर लेख है, ४२६ ( ३३८)। मन्दिर के सन्मुख सुन्दरता से खचित दो हस्ती हैं। लेख नं० १३२ ( ३४१ ) व ४३० ( ३३६) से ज्ञात होता है कि यह बस्ति अभिनव चारुकीर्ति पण्डिताचार्य के शिष्य बेलगोल के मङ्गायि ने बनवाई थी। उक्त लेखों में इसे त्रिभुवनचूड़ामणि कहा है। ये लेख शक की तेरहवों शताब्दि के ज्ञात होते हैं। शान्तिनाथमूत्ति की पीठिका पर के लेख से विदित होता है कि वह मूर्ति पण्डिताचार्य की शिष्या व देवराय महाराज की रानी भीमादेवी ने प्रतिष्ठित कराई थी [ लेख नं० ४२८ (३३७)]। ये देवराय सम्भवतः विजयनगर के राजा देवराज प्रथम हैं जिनका राज्य सन् १४०६ से १४१६ तक रहा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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