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________________ श्रवणबेलगोल नगर ४ दानशाले बस्ति-यह छोटा सा देवालय अक्कन बस्ति के द्वार के पास ही है। इसमें एक तीन फुट ऊँचे पाषाण पर पञ्चपरमेष्टी की प्रतिमाये हैं। चिदानन्द कवि के मुनिवंशाभ्युदय (शक सं० १६०२ ) के अनुसार मैसूर के चिक्क देवराज ओडेयर ने अपने पूर्ववर्ती नृप दोड्डु देवराज ओडेयर के समय में (सन् १६५६ - १६७२ ईखो) बेल्गोल की यात्रा की, दानशाला के दर्शन किये और राजा से उसके लिये मदनेय ग्राम का दान करवाया। यहाँ पहले दान दिया जाता रहा होगा इसी से इस बस्ति का यह नाम पड़ा। ५ नगर जिनालय--इस भवन में गर्भगृह, सुखनासि और नवरङ्ग हैं। इसमें आदिनाथ की प्रभावली संयुक्त अढ़ाई फुट ऊँची मूत्ति है। नवरङ्ग की बाई ओर एक गुफा में दो फुट ऊँची ब्रह्मदेव की मूत्ति है जिसके दाये हाथ में कोई फल और बायें हाथ में कोड़े के आकार की कोई चीज है। पैरों में खड़ाऊँ हैं। पीठिका पर घोड़े का चिह्न बना हुआ है। यहाँ के लेख नं० १३० ( ३३५ ) से ज्ञात होता है कि इस मन्दिर को होयसल नरेश बल्लाल ( द्वितीय ) के 'पट्टणस्वामी' व नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवर्ति के शिष्य नागदेव मंत्री ने शक सं० १११८ में निर्माण कराया था। नगर के महाजनांद्वारा ही इसकी रक्षा होती थी इसी से इसका नाम नगर जिनालय पड़ा। 'श्रीनिलय' भी इस मंदिर का नाम रहा है। उक्त लेख में नागदेव मंत्री द्वारा कमठपार्श्वनाथबस दि के सन्मुख 'नृत्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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