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________________ ४४ श्रवणबेलगोल के स्मारक बने हुए आइने के सहश चमकीले स्तम्भ और कुशल कारीगरी के बने हुए नवछत बड़े हो सुन्दर हैं। मंदिर की गुम्मट अनेक प्रकार की जिन-मूत्तियों से चित्रित है, शिखर पर सिंहललाट है। दक्षिण की दीवाल सीधी न होने के कारण उसमें पत्थर के प्राधार लगाये गये हैं। द्वारे के पास के लेख (नं. १२४ ( ३२७ ) से ज्ञात होता है कि यह बस्ति होयसल नरेश बल्लाल ( द्वितीय ) के ब्राह्मण मंत्री चन्द्रमौलि की जैन धर्मावलम्बिनी भार्या प्राचियक्क ने शक सं० ११०३ में निर्माण कराई थी व राजा ने उसकी रक्षा के निमित्त बम्मेयनहल्लि नामक ग्राम का दान दिया था। 'अक्कन' प्राचियक्कन का ही संक्षिप्त रूप है इसी से इसे अक्कन बस्ति कहते हैं। यही बात लेख नं० ४२६ ( ३३१ ) व ४६४ से भो सिद्ध होती है। ३ सिद्धान्त बस्ति-यह बस्ति अक्कन बस्ति के पश्चिम की ओर है। किसी समय जैन सिद्धान्त के समस्त ग्रंथ इसी बस्ति के एक बन्द कमरे में रक्खे जाते थे। इसी से इसका नाम सिद्धान्त बस्ति पड़ा। कहा जाता है कि धवल, जयधवल आदि अत्यन्त दुर्लभ ग्रंथ यहीं से मूडविद्रो गये हैं। इसमें एक पापाय पर चतुर्विशति तीर्थ करों की प्रतिमायें हैं। बीच में पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा है और उनके आसपास शेष तीर्थकरों की। यहाँ के लेख नं० ४२७ ( ३३२ ) से ज्ञात होता है कि यह चतुर्विशति मूत्ति उत्तर भारत के किसी यात्री ने शक सं० १६२० के लगभग प्रतिष्ठित कराई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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