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________________ ४३ श्रवणबेलगोल नगर जमीन पर एक दस फुट का चौकोर पत्थर बिछा हुआ है। आगे के भाग और बरामदे में भी इतने इतने बड़े पत्थर लगे हुए हैं। ये भारी-भारी पाषाण यहाँ कैसे लाये गये होंगे, यह भी आश्चर्यजनक है। नवरङ्गद्वार की चित्रकारी बड़ी ही मनोहर है। इसमें लताएँ व मनुष्य और पशुओं के चित्र खुदे हुए हैं। मुख्य भवन के चारों ओर बरामदा और पाषाण का चार फुट ऊँचा कठघरा है। बस्ति के सन्मुख एक पाषाण-निर्मित सुन्दर मानस्तम्भ है। होयसल नरेश नरसिंह ( प्रथम ) के भण्डारि हुल्ल द्वारा निर्माण कराये जाने के कारण यह भण्डारि बस्ति कहलाती है। लेख नं० १३७ ( ३४५ ) और १३८ (३४६) से ज्ञात होता है कि यह शक सं० १०८१ में निर्माण कराई गई थी व नरसिंह नरेश ने इसे भव्य-चूडामडि नाम देकर इसकी रक्षा के हेतु सवणेरु ग्राम का दान दिया था। उक्त लेखों में हुल्ल और उनके बस्ति-निर्माण का सुन्दर वर्णन है। २ अक्कन बस्ति-नगर भर में यही बस्ति होयसलशिल्पकला का एकमात्र नमूना है। इस सुन्दर भवन में गर्भगृह, सुखनासि, नवरङ्ग और मुखमण्डप हैं। गर्भगृह में सप्तफणी पार्श्वनाथ की पाँच फुट ऊँची भव्य मूर्ति है। गर्भगृह के दरवाजे पर बड़ा अच्छा खुदाई का काम है। सुखनासि में एक दूसरे के सन्मुख साढ़े तीन फुट ऊँची पञ्चफणी धरणेन्द्र यक्ष और पद्मावती यक्षिणी की मूत्तियाँ हैं। दरवाजे के आसपास जालियाँ हैं। नवरङ्ग के चार काले पाषाण के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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