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२१ सिद्धान्तसारादिसंग्रह - ( १ श्रीजिनचन्द्राचार्यकृत सिद्धान्तसार प्राकृत, श्रीज्ञानभूषणकृत भाष्यसहित, श्री योगीन्द्रकृत योगसार प्राकृत, ३ अमृताशीति संस्कृत, ४ निजात्माष्टक प्राकृत, ५ अजितब्रह्मकृत कल्याणालोयणा प्राकृत, ६ श्रीशिवकोटिकृत रत्नमाला, ७ श्रीमाघनन्दिकृत शास्त्रसारसमुच्चय, ८ श्रीप्रभाचन्द्रकृत अर्हत्प्रवचन, ९ आप्तस्वरूप, १० वादिराज श्रेष्ठी प्रणीत ज्ञानलोचनस्तोत्र, ११ श्रीविष्णुसेनरचित समवसरणस्तोत्र, १२ श्रीजयानन्दसूरिकृत सर्वज्ञस्तवन सटीक, १३ पार्श्वनाथसमस्यास्तोत्र, १४ श्रीगुणभद्रकृत चित्रबन्धस्तोत्र, १५ महर्षिस्तोत्र १६ श्रीपद्मप्रभदेवकृत पार्श्वनाथस्तोत्र, १७ नेमिनाथस्तोत्र, १८ श्रीमानुकीर्तिकृत शंखदेवाष्टक, १९ श्रीअमितगतिकृत सामायिकपाठ, २० श्रीपद्मनन्दिरचित धम्मरसायण प्राकृत, २१ श्रीकुलभद्रकृत सारसमुच्चय, २२ श्रीशुभचन्द्रकृत अंगपण्णत्ति प्राकृत, २३ विबुधश्रीधरकृत श्रुतावतार, २४ शलाकाविवरण, २५ पं० आशाधरकृत कल्याणमाला ) पृष्ठसंख्या ३६५ । मू १॥ )
२२ नीतिवाक्यामृत - श्रीसोमदेवसूरिकृत मूल और किसी अज्ञातपण्डित - कृत संस्कृतटीका । विस्तृत भूमिका । पृ० सं० ४६४ | मू० १ || )
२३ मूलाचार - ( उत्तरार्ध) श्रीवट्टकेरस्वामीकृत मूल प्राकृत और श्रीवसुनन्दि आचार्यकृत आचारवृत्ति । पृ० ३४० । मू० १॥ )
२४ रत्नकरण्ड श्रावकाचार — श्रीमत्स्वामिसमन्तभद्रकृत मूल और आचार्य प्रभाचन्द्रकृत संस्कृतटीका, साथ ही लगभग ३०० पृष्ठकी विस्तृत भूमिका ( हिन्दी में ) है, जिसमें स्वामी समन्तभद्रका जीवनचरित और मूल तथा टीकाग्रन्थकी निष्पक्ष तथा मार्मिक समालोचना की गई है । भूमिकालेखक बाबू जुगल किशोरजी मुख्तार हैं जो इतिहासके विशेषज्ञ हैं । सम्पूर्ण ग्रन्थकी पृष्ठसंख्या ४५० मू० २)
२५ पंचसंग्रह – माथुरसंघके आचार्य श्रीअमितगतिसूरिकृत । इसमें गोम्मटसारका सम्पूर्ण विषय संस्कृतमें श्लोकबद्ध लिखा गया है । प्राकृत नहीं जाननेवालोंके लिए बहुत उपयोगी है । पृष्ठसंख्या २४० । मूल्य || - )
२६ लाटीसंहिता — ग्रन्थराज पंचाध्यायी के कर्त्ता महान् पण्डित राजमलजी -- कृत श्रावकाचारका अपूर्व ग्रन्थ । पृष्ठसंख्या १३२ । मूल्य ।।)
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