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________________ २७ पुरुदेवचम्पू-महापण्डित आशाधरके शिष्य कविवर्य अर्हद्दासकृत चम्पू ग्रन्थ । पं० जिनदासशास्त्रीकृत टिप्पणसहित । पृष्ठसंख्या २१२ । मू०॥) २८ जैन-शिलालेखसंग्रह-श्रवणबेल्गोल (जैनबद्री) के तमाम शिलालेखोंका अपूर्व संग्रह, जो ४२८ पृष्ठोंमें समाया हुआ है। इसका सम्पादन अमरावतीके किंग एडवर्ड कालेजके प्रोफेसर बाबू हीरालालजी जैन, एम० ए० एल० एल० बी० ने किया है । प्रत्येक लेखका सारांश हिन्दीमें दे दिया गया है । भूमिका १६२ पृष्ठकी है जो बहुत ही विद्वत्तापूर्ण और कामकी है। सम्पूर्ण ग्रन्थ ६०० पृष्ठोंसे ऊपरका है। मूल्य २॥) २९-३०-३१ पद्मचरित-(पद्मपुराण) आचार्य रविषेणकृत विशाल कथाग्रन्थ । यह तीन खण्डोंमें समाप्त होगा। पहला खण्ड प्रकाशित हो चुका है। मूल्य प्रत्येक खण्डका १॥) सूचना-आगे अनेक बड़े बड़े और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंके छपानेका प्रबन्ध हो रहा है। नोट-यह ग्रन्थमाला स्वर्गीय दानवीर सेठ मणिकचन्द हीराचन्दजी जे० पी० के स्मरणार्थ निकाली गई है। इसके फण्डमें लगभग १२-१३ हजार रुपयेका चन्दा हुआ था जो कि प्रायः खर्च हो चुका है। इसकी सहायता करना प्रत्येक जैनी भाईका कर्तव्य है। जो सज्जन यों सहायता न कर सकें उन्हें इसके प्रकाशित हुए ग्रन्थ ही खरीद कर अपने घर और मंदिर में रखना चाहिए। यह भी एक तरहकी सहायता ही है। हमारे प्राचीन आचार्योंके बनाये हुए हजारों ग्रन्थ भंडारोंमें पड़े पडे सड़ रहे हैं। यह ग्रन्थमाला उन ग्रन्थोंका उद्धार करके सबके लिए सुलभ कर देती है, इस लिये इसको सहायता पहुँचाना जिनवाणी माताका उद्धार करना और जैनधर्मकी प्रभावना करना है। जो महाशय एक ग्रन्थके छपाने लायक या उससे भी आधा रुपया देते हैं, उनका फोटू ग्रन्थके भीतर लगवा दिया जाता है। नीचे लिखे पतेपर पत्रव्यवहार करना चाहिए। नाथूराम प्रेमी, मंत्री, माणिकचन्द जैन-ग्रन्थमाला, हीराबाग, गिरगाँव, बम्बई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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