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विन्ध्यगिरि है। सम्भव है कि ये मूर्तियाँ चेन्नण्ण और उनकी धर्मपत्नी की हो। बस्ति से ईशान की ओर दो दोणे ( कुण्डों) के बीच एक मण्डप बना हुआ है। उपर्युक्त लेख में सम्भवत: इसी मण्डप का उल्लेख है।
८ प्रोदेगल बस्ति-इसे त्रिकूट बस्ति भी कहते हैं क्योंकि इसमें तीन गर्भगृह हैं। चन्द्रगिरि पर्वत की शान्तोश्वर बस्ति के समान यह बस्ति भी खूब ऊँचो सतह पर बनी हुई है। सीढ़ियों पर से जाना पड़ता है। भोतों की मजबूती के लिये इसमें पाषाण के आधार ( आदेगल ) लगे हुए हैं, इसी से इसे ओदेगल बस्ती कहते हैं। बीच की गुफा में आदिनाथ की और दायीं बाई गुफाओं में क्रमशः शान्तिनाथ और नेमिनाथ की पद्मासन मूर्तियाँ हैं। बस्ती के पश्चिम की ओर की चट्टान पर सत्ताइस लेख नागरी अक्षरों में हैं जिनमें अधिकतर तीर्थ-यात्रियों के नाम अङ्कित हैं (नं. ३७८-४०४) ।
चौबीस तीर्थकर बस्ति-यह एक छोटा सा देवालय है। इसमें एक अढ़ाई फुट ऊँचे पाषाण पर चौबीस तीर्थकरों की मृत्तियाँ उत्कीर्ण हैं। नीचे एक कतार में तीन बड़ी मूत्तियाँ खुदी हुई हैं जिनके ऊपर प्रभावली के
आकार में इक्कीस अन्य छोटी-छोटी मूत्तियाँ हैं। इस बस्ति के लेख नं० ११८ ( ३१३ ) से ज्ञात होता है कि इस चौबीस तीर्थकर मूर्ति की स्थापना चारुकीति पण्डित, धर्मचन्द्र आदि ने शक सं० १५७० में की थी।
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