SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 601
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१२ प्रासपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख मोनेगनकट्टदलार्जत जिन गृहमं रामदेव विभु माडिसिदं ।। २ ।। तद्गुरुकुलमेन्तेन्दडे। श्रीनयकीर्तिसिद्धान्तचक्रवर्तिगस्तशिष्यरु। विदिताध्यात्मिकबालचन्द्रमुनिराजेन्द्रायशिष्यप्रंश स्तिदवन्द्यर्मुनिमेघचन्द्रग्नघर्भास्वहयासागराभ्युदयोस्तकगच्छदेशिकगण श्रीकोण्डकुन्दान्वया स्पददीपर्करमोप्पुवर्वसुधेयोल्शस्वत्तपोलक्ष्मियिं ॥३॥ शकवर्ष ११०८ नेय विश्वावसु संवत्सरदुत्तरायण संक्रान्तियादिवारदन्दु बनवसेकारर मोत्तदनायकरु दिण्डियूरवृत्तिय गावुण्डुप्रभुगलु मेलिसासिबरु शान्तिनाथदेवरष्टविधार्चनेगं खण्डस्फुटजीर्णोद्धारक्कं ऋषियराहारदानक्कं सर्वावाधपरिहारमागि मेघचन्द्रदेव, धारापूर्वकं माडि बिट्ट गद्देबेदलेस्थलङ्ग लेन्तेन्दडे। ( यहाँ दान का विवरण है ) [चन्नरायपट्टन १६६ ] [......गङ्गवाडि के मोनेगनकट्टे का दिण्डिगर एक शाखा नगर था। मोनेगनकट्टे में रामदेवविभु ने एक विशाल जिनालय निर्माण कराया। रामदेव के गुरु, नयकीर्तिसिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य अध्यास्मिक बालचन्द्र मुनि के प्रधान शिष्य मेघचन्द्र थे। उक्त तिथि को बनवसे के कर्मचारी मोत्तद नायक तथा दिण्डियूरवृत्ति के गौण्ड और प्रभुत्रों ने शान्तिनाथ भगवान के अष्टविधार्चन के तथा जीर्णोद्धार व श्राहारदान के हेतु उक्त भूमि का दान मेषचन्द्रदेव को कर दिया । ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy