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________________ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख ४१३ ४-६७ तगडूरु ग्राम में पुरानी नगरी के स्थल पर एक पाषाण पर ( लगभग शक सं० १०५०) श्रीमत्परम-गम्भीर-स्याद्वादामोघ-लान्छन । जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन-शासनं ॥१॥ स्वस्ति श्री.........मेश्वर परमभट्टारक सत्याश्रयकुल. तिलकं चालुक्याभरण श्रोत्रिभुवनमल्ल देवर राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्द्धमानमाचन्द्राक्र्कतार सलुत्तमिरे तत्पादपद्मोपजीवि स्वस्ति समधिगतपञ्चमहाशब्द महामण्डलेश्वरद्वारावतीपुरवराधीश्वर यादवकुलाम्बरा मणि सम्यक्तचूडामणि मले. परोलु गण्ड राजमार्तण्ड कोङ्गुनङ्गलि......तलकाडुबनवासे हानुङ्गलुगोण्ड भुजबलवीरगङ्ग विष्णुवर्द्धन पोरसलदेवर... कुलगगनदिवामणिय ए......गदेवनवन मग..... विष्णु नृपं तद्भू मीश......तनूभवने......वाव...॥ पेसगर्गोण्डावावदेशङ्गलनेणिसुवुदावावदुर्गङ्गलं ब पिणसि पेलुत्तिप्पु दावावनिपतिगलं लेक्किसुत्तिप्पु देम्बोन्देसकं......कडेवर'...............सा धिसिदं भूलोक......तिलकं वीरविष्णुक्षितीश।।२॥ ...सङ्कथाविनोददि राज्य गेटवुत्तिरे तत्पादपद्मोपजीवि ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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