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विन्ध्यगिरि कराया था। दरवाजे के दोनों ओर दायें-बायें क्रमशः बाहुबलि
और भरत की मूर्तियाँ हैं। इन पर जो लेख हैं (३६८-३६८) उनसे विदित होता है कि ये गण्डविमुक्त सिद्धान्तदेव के शिष्य दण्डनायक भरतेश्वर द्वारा प्रतिष्ठित की गई हैं। इनका समय शक सं० १०५२ के लगभग प्रतीत होता है। इन मूर्तियों की प्रतिष्ठा का उल्लेख शिलालेख नं० ११५ (२६७) में भी आया है जिसके अनुसार ये मूर्तियाँ दरवाजे की शोभा बढ़ाने के लिये स्थापित की गई हैं। इस लेख के अनुसार इस दरवाजे की सीढ़ियाँ भी उक्त दण्डनायक ने ही निर्माण कराई हैं।
४ सिद्धरगुण्ड-अखण्ड दरवाजे की दाहिनी ओर एक बृहत् शिला है जिसे 'सिद्धर गुण्डु' (सिद्ध-शिला ) कहते हैं । इस शिला पर अनेक लेख हैं। ऊपरी भाग की कई सतरों में जैनाचार्यो के चित्र हैं। कुछ चित्रों के नीचे नाम भी अङ्कित हैं।
५ गुल्लकायज्जिबागिलु-यह एक दूसरे दरवाजे का नाम है। इस दरवाजे की दाहिनी ओर एक शिला पर एक बैठी हुई स्त्री का चित्र खुदा है। यह लगभग एक फुट का है । इसे लोगों ने गुल्लकायजि का चित्र समझ लिया है। इसी से उक्त दरवाजे का नाम गुल्लकायजिबागिलु पड़ गया। पर चित्र के नीचे जो लेख (४१८) पाया गया है उससे विदित होता है कि वह एक मल्लिसेट्टि की पुत्रो का चित्र है। गुल्लकायि की मूर्ति का वर्णन ऊपर कर ही चुके हैं।
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