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________________ ३० श्रवणबेल्गोल के स्मारक पाँच फुट ऊँची 'गुल्लकायज्जि' की मूर्ति है, जिसके हाथ में 'गुल्लकायि' है। जन-श्रुति के अनुसार यह स्तम्भ और गुल्लकायजि की मूर्ति दोनों स्वयं चामुण्डराय ने प्रतिष्ठित कराये थे । २ सिद्धर बस्ति-यह एक छोटा सा मन्दिर है जिसमें तीन फुट ऊँची सिद्ध भगवान की मूत्ति विराजमान है। मूर्ति के दोनों ओर लगभग छः-छः फुट ऊँचे खचित स्तम्भ हैं। ये स्तम्भ महानवमी मण्डप के स्तम्भ के समान ही उच्च कारीगरी के बने हुए हैं। दायीं बाजू के स्तम्भ पर अर्हदास कवि का रचा हुआ पण्डितार्य की प्रशस्तिवाला बड़ा भारी सुन्दर लेख है [१०५ (२५४)] जिसके अनुसार पण्डितार्य की मृत्यु शक संवत् १३२० में हुई थी। इस स्तम्भ में पीठिका पर विराजमान, शिष्य को उपदेश देते हुए, एक आचार्य का चित्र है। शिष्य सन्मुख बैठा है। दूसरे चित्र में जिनमूत्ति है। बायीं बाजू के स्तम्भ पर मङ्गराज कवि का रचा हुआ सुन्दर लेख है [१०८ ( २५८)] जिसमें शक सं० १३५५ में श्रुतमुनि के स्वर्गवास का उल्लेख है। ३ अखण्ड बागिलु-यह एक दरवाजे का नाम है । यह नाम इसलिये पड़ा क्योंकि यह पूरा दरवाजा एक अखण्ड शिला को काटकर बनाया गया है। दरवाजे का ऊपरी भाग बहुत ही सुन्दर खचित है। इसमें लक्ष्मी की पद्मासन मूर्ति खुदी है जिसको दोनों ओर से दो हाथी स्नान करा रहे हैं। जन-श्रुति के अनुसार यह द्वार भी चामुण्डराय ने निर्माण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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